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ताधमकथा
अन्तकृदशामा
समवायाग
जैन आगम साहित्य का संक्षिप्त परिचय जैन आगम साहित्य भारतीय साहित्य की अनमोल उपलब्धि है, अनुपम निधि है और ज्ञान-विज्ञान का अक्षय भंडार है। अक्षर देह से वह जितना विशाल एवं विराट है उससे भी कहीं अधिक उसका सूक्ष्म एवं गंभीर चिंतन विशद व महान है। उसमें जीवनोत्थान की प्रबल प्रेरणा प्रदान की है। विराट विश्व से अणुपरमाणु तक के सूक्ष्मतम रहस्यों को बताकर विश्व संचालन के नियमों को अति विलक्षण स्यादवाद व अनेकांतवाद के माध्यम से बताया है। आत्मा की शाश्वत सत्ता का उद्घोष किया है और उसकी सर्वोच्च विशुद्धि का पथ प्रदर्शित किया है। उसके साधन रूप में त्याग, वैराग्य और संयम से जीवन को चमकाने का संदेश दिया है। संयम-साधना, आत्म-आराधना और मनोनिग्रह का उपदेश दिया है। जैनागमों के कर्ता केवल दार्शनिक ही नहीं, अपितु महान व सर्वोच्च सफल साधक रहे है। उन्होंने
काण्ड की तरह एकान्त शांत स्थान पर बैठ कर तत्व की विवेचना नहीं की है और न हेगोल की भांति राज्याश्रय में रहकर अपने विचारों का प्रचार किया है और न उन वैदिक ऋषियों की तरह आश्रमों में रहकर कंद-मूलफल खाकर जीवन-जगत की समस्याओं को सुलझाने का प्रयास किया है, किन्तु उन्होंने सर्वप्रथम मन के मैल को साफ किया। आत्मा को साधना की अग्नि में तपाकर स्वर्ण की तरह निखारा। प्रथम ही स्वयं ने अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह की साधना की, कठोर तप की आराधना की और अन्त में ध्यान बल से ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय और
अन्तराय कर्मों को क्षय कर केवलज्ञान को प्राप्त किया। उसके पश्चात उन्होंने सभी जीवों की रक्षा रूप दया के लिए देशना दी। यही कारण है कि जैनागमों में जिस प्रकार आत्मा-साधना का वैज्ञानिक और क्रमबद्ध वर्णन उपलब्ध है वैसा किसी भी प्राचीन, अर्वाचीन,
भारतीय और पाश्चात्य विचारक के साहित्य में नहीं मिलता है। वेदों में आध्यात्मिक चिंतन शून्य है और लोक चिंतन अधिक है। उसमें जितना देवस्तुति का वर्णन है उतना आत्म-साधना का नहीं है। उपनिषद् आध्यात्मिक चिन्तन की ओर अवश्य अग्रसर हुए है किन्तु उनका ब्रह्मवाद और आध्यात्मिक विमर्श इतना कठिन है कि उसे सर्वसाधारण लोग समझ नहीं सकते। जैनागमों की तरह आत्म साधना का अनुभूत मार्ग उनमें नहीं है। डाक्टर हर्मन जेकोबी, डाक्टर शुबिंग्र प्रभृति पाश्चात्य विचारक ने भी कहा है कि जैनागमों में दर्शन और जीवन का, आचार और विचार का, भावना और कर्तव्य का जैसा सुन्दर समन्वय
चाराग
SonamPraan