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________________ श्री गौतमस्वामी को केवलज्ञान जिस समय भगवंत का निर्वाण हुआ, उस समय भगवंत के प्रमुख शिष्य श्री इन्द्रभूति गौतम वहां उपस्थित नहीं थे। भगवंत ने ही उनको पास वाले गांव में देवशर्मा' नाम के ब्राह्मण को प्रतिबोध देने भेजा था । जब वे वापस अपापापुरी पधार रहे थे तब रास्ते में उनको मालूम हुआ कि भगवंत का निर्वाण हो गया है।' गौतमस्वामी को भगवान महावीर के प्रति प्रगाढ़ प्रीति थी, प्रबल अनुराग था। जब भगवंत के निर्वाण के समाचार सने... वे स्तब्ध हो गये... और मार्ग में ही बैठ गये... एक बच्चे की तरह फूट-फूट कर रोने लगे। प्रभु-विरह की वेदना से उसका हृदय द्रवित हो गया। ___ भगवान सर्वज्ञ थे... वे अपना निर्वाण जानते थे... फिर भी उन्होंने मुझे निर्वाण के समय पास नहीं रखा...क्या देखा होगा उन्होंने अपने ज्ञान में ? खैर, वे वीतराग थे। उन को कहां किसी के प्रति राग था ? राग तो मुझे था ..। अब वे नहीं रहे... अब मुझे किस के प्रति राग करना? राग ही तो मुक्ति में रूकावट करता है...? ___ समताभाव में स्थिर हो गये! शुक्लध्यान में निमग्न हो गये। चार घाती कर्मों का नाश हो गया। वे केवलज्ञानी बन गये। कार्तिक शुक्ला एकम के प्रभात समय में गौतमस्वामी को केवल-ज्ञान प्राप्त हुआ। देवों ने आकर केवलज्ञान का महोत्सव किया। भगवान के निर्वाण के बाद श्री गौतमस्वामी 12 वर्ष तक पृथ्वी पर विचरते रहे और भव्य जीवों को प्रतिबोध देते रहे। वे भी देव-देवेन्द्रों से पूजित थे। श्री गौतमस्वामी का राजगृह में निर्वाण हुआ। उनको अन्तिम मासक्षमण का तप था। श्री वीर प्रभु के मोक्षगमन से चतुर्विध संघ में उदासी छा गई थी। परन्तु देवताओं ने श्री गौतमगणधर को केवलज्ञान होने की घोषणा की। जिससे संघ में हर्ष प्रगटा। प्रभु के निर्वाण से राजा नन्दिवर्धन को अतीव दुःख ओर शोक हुआ। तब शेक निवारण करने उनकी बहन सुदर्शना उन्हें अपने घर ले गई। उस की स्मृति में 'भाईबीज' प्रसिद्ध हआ। पहले रत्नों के दीपक थे। फिर स्वर्ण और चांदी के थे। अब हीन-काल प्रभाव से मृतिका के दीपक होते है। दीपावली की आराधना :दीपावली पर्व की आराधना भगवान महावीर स्वामी के निर्वाण कल्याणक के रूप में करना है। प्रभु वीर का स्मरण करना, उनके जीवन को और उनके अपार उपकारों को याद करना है। यह दीपावली पर्व पर्वोत्तम है। वृक्षों में कल्पवृक्ष। देवों में इन्द्र, राजाओं में चक्रवर्ती, ज्योतिष्कों में चन्द्र, तेजस्वियों में सूर्य और मुनियों में गौतम श्रेष्ठ है। वैसे ही पर्यों में दीपमालिका है। इस दिन ज्ञात-नन्दन श्रमणनाथ प्रभु वीर मोक्ष पधारे और श्री गौतम गणधर ने केवलज्ञान पाया। 1115 Homeprepren
SR No.004054
Book TitleJain Dharm Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2011
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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