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________________ पोखरी शेखी बधारना UAR 3. अधिक बोलना, व्यर्थ बोलना, आवश्यकता से अहिगरण भोग-अइरित्ते अधिक बोलना, असभ्य और असंबंध रहित बोलना 4. शस्त्र आदि तैयार रखना अथवा चक्की और हत्था, हल और फलक, धनुष और बाण आदि वस्तुएं साथ-साथ रखना। 5. भोगोपभोग की वस्तु जितनी अपने लिये आवश्यक हो उससे अधिक रखना। ये क्रमशः 1. कंदर्प 2. कौत्कुच्य 3. मौर्य 4. अधिकरणता 5. भोगातिरिक्तता नाम के पांच अतिचार हैं ||2611 (नवें (सामायिक) व्रत के अतिचारों की आलोचना) तिविहे दुप्पणिहाणे, अणवणे तहा सइविहूणे। सामाइय वितह-कए, पढमे सिक्खावए निंदे ।।27।। शब्दार्थ तिविहे - तीन प्रकार के। सामाइय - सामायिक। दुप्पणिहाणे - दुष्ट प्रणिधान-अर्थात् मन, वितहकए - सम्यक् प्रकार से वचन और काया का अशुभ व्यापार। पालन न किया हो अणवठ्ठाणे - अनवस्थान। सामायिक की विराधना की हो । तहा - तथा। पढमे - पहले। सइविहूणे - स्मरण न रहने से। सिक्खावए - शिक्षा व्रत। निंदे - मैं निन्दा करता हूँ। भावार्थ : पहले शिक्षाव्रत में सामायिक को निष्फल करने वाले पांच अतिचार हैं - 1. मनो-दुष्प्रणिधान मन को काबू में रखना। मन में घर, व्यापार आदि के कार्यों IMG संबंधी सावध व्यापार का चिंतन करना। | 2. वचन दुष्प्रणिधान वचन का संयम न रखना - कर्कश आदि सावध वचन बोलना ___3. काय-दुष्प्रणिधान काया की चपलता को न रोकना, प्रमार्जन तथा पडिलेहन न की हुई भूमि पर बैठना अथवा पैर आदि फैलाना सिकोड़ना चलना, फिरना आदि। 4. अनवस्थान अस्थिर बनना अर्थात् सामायिक का समय पूर्ण होने से पहले ही सामायिक पार लेना अथवा जैसे तैसे अस्थिर मन से सामायिक करना। 5. स्मृतिविहीन ग्रहण किये हुए सामायिक व्रत को प्रमादवश भूल जाना अथवा नींद आदि की प्रबलता के (3) काय दुष्पणिधान हीवारीपीठ टिकाकाबनना चप्पणियार ससिटिजरमाया सामाछिटीकाठी ( वचन दुष्पणियान मेगा काम करके जानामहीं तो ठीक नहीं होगा। (5) अगस्थितना ԱՄԱՌԱՐԿԱՏԻՐԱԿԱԼՎԵԼ छालासमा மெகாராதிகா 88%
SR No.004054
Book TitleJain Dharm Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2011
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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