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________________ भारीपन मृदुलता 1. गुरू स्पर्श नाम कर्म :- जिस कर्म के उदय से जीव का शरीर लोहे जैसा भारी हो, वह स्पर्श नाम कर्म है। 2. लघु स्पर्श नाम कर्म :- जिस कर्म के उदय से जीव का शरीर रूई जैसा हल्का हो - वह लघुस्पर्श नाम कर्म है। नरक संसार 3. मुदु स्पर्श नाम कर्म :- जिस कर्म के उदय से जीव का शरीर मक्खन जैसा कोमल हो, वह मृदुस्पर्श नाम कर्म है। 4. कर्कश स्पर्श नाम कर्म :- जिस कर्म के उदय से जीव का शरीर पत्थर जैसा खुरदरा, कर्कश हो, वह कर्कश नाम कर्म है। 5. शीत स्पर्श नाम कर्म :- जिस कर्म के उदय से जीव का शरीर बर्फ जैसा ठंडा हो उसे शीत स्पर्श नाम कर्म कहते हैं। 6. उष्ण स्पर्श नाम कर्म :- जिस कर्म के उदय से जीव का शरीर आग जैसा उष्ण (गरम) हो उसे उष्ण स्पर्श नाम कर्म कहते हैं। 7. स्निग्ध स्पर्श नाम कर्म :- जिस कर्म के उदय से जीव का शरीर तेल जैसा चिकना हो, उसे स्निग्ध स्पर्श नाम कर्म कहते है। 8. रूक्ष स्पर्श नाम कर्म :- जिस कर्म के उदय से जीव का शरीर बालू जैसा रूखा हो, उसे रूक्ष स्पर्श नाम कर्म कहते है । 13. आनुपूर्वी नाम कर्म :- जिस कर्म के उदय से जीव विग्रहगति से अपने उत्पत्ति स्थान पर तिर्वच संसार मनुष्य संसार चार गतियों का नाम संसार है। Jain Education International देव संसार हल्कापन www कठोरता 2000000 पहुँचाता है, उसे आनुपूर्वीनाम कर्म कहते है। विग्रहगति यानि एक भव से दूसरे भव में उत्पन्न होने के मध्य के काल में होने वाली आत्मा की गति अर्थात् परभव में जाते हुए जीव को उत्पत्ति क्षेत्र की तरफ मोडने का काम करने वाले कर्म को आनुपूर्वी नाम कर्म कहते हैं। इस कर्म का उदय विग्रह गति में ही होता है। इसके चार भेद है। 1. नरकानुपूर्वी :- जीव को नरक भव में जाते हुए आकाश प्रदेशे की श्रेणी के अनुसार गति करवाने एवं उत्पत्ति स्थान की तरफ मोड गमन करवाने वाले कर्म को नरकानुपूर्वी नाम कर्म कहते है। 84 For Personal & Private Use Only 2. तिर्यंचानुपूर्वी नाम कर्म • जीव को तिर्यंच भव में जाते हुए आकाश प्रदेश की श्रेणी के अनुसार उत्पत्ति स्थल की तरफ मोड गमन करवाने वाले कर्म को तिर्यचानुपूर्वी नाम कर्म कहते है। 3. मनुष्यानुपूर्वी नाम कर्म :- जीव को मनुष्य भव में जाते हुए आकाश प्रदेश की श्रेणी के अनुसार उत्पत्ति स्थल की तरफ मोड गमन करवाने वाले कर्म को मनुष्यानुपूर्वी नाम कर्म कहते हैं। 4. देवानुपूर्वी नाम कर्म :- जीव को देव भव में जाते हुए आकाश प्रदेश की श्रेणी के अनुसार उत्पत्ति स्थल www.jainelibrary.org
SR No.004053
Book TitleJain Dharm Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2011
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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