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नहीं होता क्योंकि उनके शरीर में अंगोपांग नहीं होते हैं। 5. बंधन नाम कर्म :- जिस कर्म के उदय से औदारिक आदि शरीर के योग्य पूर्व में ग्रहण किये गये पुद्गलों का एवं नये-नये ग्रहण किये जाने वाले पुद्गलों का परस्पर सम्बन्ध स्थापित होता है, उसे बंधन नाम कर्म कहते हैं । इसके मुख्य 5 भेद हैं 1. औदारिक बंधन नाम कर्म, 2. वैक्रिय बंधन नाम कर्म, 3. आहारक बंधन नाम कर्म, 4. तैजस बंधन नाम कर्म 5. कार्मण बंधन नाम कर्म | इसके 15 भेद भी है
औदारिक - औदारिक बंधन वैक्रिय - वैक्रिय बंधन आदौरिक - तैजस बंधन वैक्रिय - तैजस बंधन
वैक्रिय - कार्मण बंधन औदारिक - तैजस कार्मण बंधन वैक्रिय - तैजस कार्मण बंधन आहारक - आहारक बंधन तैजस - तैजस बंधन आहारक - तैजस बंधन कार्मण - कार्मण बंधन आहारक - कार्मण बंधन तैजस - कार्मण बंधन आहारक - तैजस कार्मण बंधन
औदारिक, वैक्रिय, आहारक बंधन के भंगे नहीं होता क्योंकि वे परस्पर विजातीय है। औदारिक शरीरी आत्मा जब वैक्रिय अथवा आहारक शरीर का निर्माण करती है तब वे दोनों शरीर एक मेक, ओतप्रोत नहीं होते हैं जिस प्रकार तैजस और कार्मण शरीर औदारिकादि के साथ एकमेक होते हैं। औदारिक शरीर वाली आत्मा जब आहारक अथवा वैक्रिय शरीर का निर्माण करती है वे औदारिक शरीर से भिन्न होते हैं।
देवात्मा जब औदारिक शरीर में प्रवेश करती है तब देवो का वैक्रिय शरीर अलग होता है, औदारिक शरीर के साथ मात्र संयोग होता है तदात्मय भाव नहीं होता है। जब देवात्मा चली जाती है तब वैक्रिय शरीर भी चला जाता है। औदारिक, वैक्रिय और आहारक शरीर में तादात्मय भाव नहीं होने से उनका बंधन नाम कर्म नहीं होता है। 6. संघातन नाम कर्म :- जो कर्म औदारिकादि पाँच शरीर के निर्माण के अनुरूप पुद्गलों को एकत्र करता है, उसे संघातन नाम कर्म कहते हैं। जिस प्रकार दंताली अलग-अलग स्थानों पर बिखरी हुई घास को एकत्र करती है ठीक उसी प्रकार संघातन नाम कर्म बिखरे हुए पुद्गलों का एकत्र करता है। शरीर के नाम से ही उनके 5 प्रकार इस तरह है 1. औदारिक संघातन 2. वैक्रिय संघातन 3. आहारक संघातन 4. तैजस संघातन 5. कार्मण संघातन
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