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वज्र-ऋषभ
7. संघयण (संहनन) नाम कर्म :- हड्डियों का आपस में जुडना, मिलना, अर्थात् जिस नाम कर्म के उदय से हड्डियों की रचना विशेष होती है, उसे संघयण नाम कर्म कहते हैं। (1.) वज्र ऋषभ नाराच संघयण नाम कर्म :- वज्र, ऋषभ और नाराच इन तीन शब्दों के योग से निष्पन्न वज्रऋषभनाराच पद हैं। 'वज्र'
पच संघयण ऋषभनाराच संघयण,
का अर्थ कील है, ऋषभ का अर्थ वेष्टन पट्ट (पट्टि) है और 'नाराच' का अर्थ दोनों ओर से मर्कट बंध हैं। जिस संहनन में दोनों तरफ से मर्कट बंध से जुडी हुई दो हड्डियों पर तीसरी पट्ट की आकृति वाली हड्डी का चारों ओर से वेष्टन हो और जिसमें इन तीनों हड्डियों को भेदने वाली वज्र नामक हड्डी की कील बीच में हो उसे वज्र ऋषभ नाराच संघयण कहते हैं। यह सबसे सुदृढ़ पराक्रमी शरीर में होता है। अरिहंत, चक्रवर्ती आदि को यह संघयण होता है। (2). ऋषभ नाराच संघयण नाम कर्म :- जिस कर्म के उदय से हड्डियों की रचना विशेष में दोनों तरफ मर्कट बंध हो, तीसरी हड्डी का वेष्टन भी हो लेकिन तीनों को भेदनेवाली हड्डी की कील न हो, ऐसे
ऋषभ नाराच संघयण कहते हैं। (3). नाराच संघयण नाम कर्म :- जिस कर्म के उदय से हड्डियों की रचना में दोनों तरफ मर्कट बंध हो, लेकिन वेष्टन और कील न हो उसे नाराच
नाराच
संघयण संघयण नाम कर्म कहते है। अर्ध-नाराच
(4). अर्धनाराच संघयण नाम कर्म :- जिस कर्म संघयण
के उदय से हड्डियों की रचना में एक और मर्कटबंध
और दूसरी ओर कील हो उसे अर्धनाराच संघयण नाम कर्म कहते हैं। (5). कीलिका संघयण नाम कर्म :- जिस कर्म के उदय से हड्डियों की रचना में मर्कटबंध, वेष्टन और कील न होकर यो ही हड्डियों आपस में जुड़ी हो उसे सेवार्तसंघयण नाम कर्म कहते हैं। सेर्वात को छेवह अथवा छेदवृत्त भी कहते हैं। 8. संस्थान नाम कर्म :- शरीर के आकार को संस्थान कहते हैं। जिस कर्म के उदय से औदारिक आदि शरीर की संरचना, शास्त्र में कहे गये प्रमाणो के अनुरूप माप वाली अथवा माप रहित प्राप्त होती है, उसे संस्थान नाम कर्म कहते हैं। यह छह प्रकार का है
कीलिका संघयण
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