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________________ Body of karmas की प्राप्ति होती है, उसे कार्मण शरीर नाम कर्म कहते हैं। कार्मण वर्गणा से बने शरीर को कार्मण शरीर कहते हैं। कार्मण शरीर स्वयं आठ कर्म रूप हैं। इसका अंत किये बिना संसार चक्र का अंत नहीं होता हैं। * किस गति में कितने शरीर पाये जाते हैं देवगति :- वैक्रिय - तैजस - कार्मण शरीर । नरक गति :- वैक्रिय - तैजस - कार्मण शरीर। मनुष्य गति :- औदारिक - वैक्रिय - आहारक - तैजस - कार्मण शरीर | पृथ्वीकाय - अपकाय-तेउकाय-वनस्पतिकाय :- औदारिक-तैजस-कार्मण शरीर। वायुकाय :- औदारिक - वैक्रिय - तैजस - कार्मण शरीर । विकलेन्द्रिय :- औदारिक - तैजस - कार्मण शरीर । तिर्यंच पंचेन्द्रिय :- औदारिक - वैक्रिय - तैजस - कार्मण शरीर | एक साथ एक जीव के कितने शरीर हो सकते हैं? दो शरीर तैजस - कार्मण तीन शरीर - औदारिक - तैजस - कार्मण वैक्रिय - तैजस - कार्मण चार शरीर औदारिक - वैक्रिय - तैजस - कार्मण / औदारिक - आहारक - तैजस - कार्मण कभी भी एक शरीर नहीं हो सकता है। एक साथ पांच शरीर भी नहीं हो सकते है। 4. अंगोपांग नाम कर्म : जिस कर्म के उदय से शरीर में अंग, उपांग एवं अंगोपांग की रचना होती है उसे अंगोपांग नाम कर्म कहते हैं। अंग - शरीर के मुख्य अवयवों को अंग कहते हैं | अंग आठ है - दो हाथ, दो पाँव, पीठ, पेट, छाती और मस्तक उपांग - अंग के उप अवयवों को उपांग कहते हैं। जैसे - आंख, कान, अंगुलियाँ, घुटने, जंघा, नाभी, रीढ़ की हड्डी आदि। अंगोपांग - उपांग के उप अवयवों को अंगोपांग कहते हैं । जैसे - नाखुन, रेखाएँ, कीकी आदि। इस कर्म के 3 भेद है 1. औदारिक अंगोपांग नाम कर्म, 2. वैक्रिय अंगोपांग नाम कर्म, 3. आहारक अंगोपांग नाम कर्म तैजस और कार्मण शरीर के अंगोपांग नहीं होते हैं। एकेन्द्रिय जीव को अंगोपांग नाम कर्म का उदय 79 Jain Education International For Personal & Private Use Only www jainelibrary.org
SR No.004053
Book TitleJain Dharm Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2011
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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