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________________ Animals Immobile Goddess (ए). औदारिक शरीर नाम कर्म :- जिस कर्म के उदय से जीव को औदारिक शरीर की प्राप्ति होती है, उसे औदारिक शरीर नाम कर्म कहते है। जिस शरीर में माँस, रस, रक्त, अस्थि, वसा (चर्बी), शुक्र (वीर्य) और मज्जा हो वह औदारिक शरीर हैं। सभी मनुष्य एवं तिर्यंचों का Gods ..Infernal शरीर औदारिक होता हैं। (बी). वैक्रिय शरीर नाम कर्म :- विक्रिया अर्थात् विविध क्रियाएँ करने वाला शरीर | जिस नाम कर्म से जीव को वैक्रिय शरीर की प्राप्ति होती है जो सुक्ष्म पुद्गलों से निर्मित होता है तथा विभिन्न प्रकार के रूप Body of celestial and hellish beings बनाये जा सकते हैं - उसे वैक्रिय शरीर नाम कर्म कहते हैं। ऐसा शरीर देव एवं नारकियों को जन्म से ही प्राप्त होता है, कुछ तिर्यंच और मनुष्य तप, त्याग आदि द्वारा प्राप्त शक्ति विशेष से वैक्रिय शरीर धारण कर सकते हैं। (सी). आहारक शरीर नाम कर्म :- जिस कर्म के उदय से जीव को आहारक शरीर की प्राप्ति हो, उसे आहारक शरीर नाम कर्म कहते हैं। तीर्थंकर परमात्मा की रिद्धि देखने के लिए, विशिष्ट ज्ञान के लिए तथा With special अपने संशय का निराकरण करने के लिए चौदह पूर्वधर महात्मा स्फटिक की भाँति अत्युज्जवल एवं व्याघात रहित अर्थात् न तो स्वयं दूसरों से रूकता है और न दूसरों को रोकनेवाला होता है। जिस शरीर का निर्माण करते है, उसे आहारक शरीर कहते हैं। ऐसे शरीर से अन्य क्षेत्र में स्थित सर्वज्ञ के पास पहुँचकर उनके संदेह का निवारण कर फिर अपने स्थान में पहुँच जाते है। यह कार्य सर्व भव की अपेक्षा Body that helps in digestion से 4 बार और एक भव में 2 बार सिर्फ अन्तमुहूंत में हो जाता है। (डी). तेजस शरीर नाम कर्म :- जिस कर्म के उदय से जीव को तैजस शरीर की प्राप्ति हो, उसे तैजस शरीर नाम कर्म कहते हैं। तैजस पुद्गलों से बना हुआ, आहार को पचानेवाला तथा तेजोलेश्या और शीतलेश्या का साधक शरीर तैजस शरीर कहलाता है। सभी संसारी जीवों को यह शरीर होता हैं। (ई). कार्मण शरीर नाम कर्म :- जिस कर्म के उदय से जीव को कार्मण शरीर powers Clone body Clone body of advanced ascetic ANS-781 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004053
Book TitleJain Dharm Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2011
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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