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(2). तिर्यंच गति नाम कर्म :- नरक की अपेक्षा कम दुख और देव-मनुष्य की अपेक्षा कम सुख वाला अविवेक युक्त भव तिर्यंच भव। उस भव की प्राप्ति कराने वाले कर्म को तिर्यंच गति नाम कर्म कहते हैं। (3). मनुष्य गति नाम कर्म :- विवेक और धर्म की प्राप्ति और पंचम गति रूप मोक्ष की प्राप्त करानेवाला भव मनुष्य भव हैं। उस मनुष्य भव की प्राप्ति करानेवाले कर्म को मनुष्य गति नाम कर्म कहते हैं। (4). देवगति नाम कर्म :- संसार से सुखो की अधिकता वाले भव को देव भव कहते है। उस भव की प्राप्ति करानेवाले कर्म को देवगति नाम कर्म कहते हैं। 2. जाति नाम कर्म :- इन्द्रिय रचना के निमित्त बनने वाला कर्म पुद्गल जाति
कहलाते हैं। जाति का निर्णय करनेवाला जाति नाम कर्म हैं। जिस नाम कर्म के उदय से समान चैतन्य अवस्था प्राप्त होती है-उसे जाति नाम कर्म कहते हैं। यहाँ चैतन्य अवस्था का अर्थ है समान जाति की प्राप्ति से हैं। (ए). एकेन्द्रिय जाति नाम कर्म :- जिन जीवों को एक मात्र स्पर्शेन्द्रिय होती है उनको एकेन्द्रिय कहा जाता है। जैसे पृथ्वीकाय, अपकाय, तेउकाय, वायुकाय और वनस्पतिकाय।
एकेन्द्रिय " (बी). बेइन्द्रिय जाति नाम कर्म :- जिन जीवों को स्पर्शेन्द्रिय और रसनेन्द्रिय होती है, वे बेइन्द्रिय जाति के जीव कहे जाते है। जैसे-लट,
कमि, सीप आदि। बेइन्द्रिय (सी). तेइन्द्रिय जाति नाम कर्म :- जिन जीवों को उपर्युक्त दो इन्द्रियों के
तेइन्द्रिय साथ घ्राणेन्द्रिय होती है वे तेइन्द्रिय जाति के जीव कहे जाते हैं। जैसे : जूं, चींटी, खटमल, मकोड़ा आदि। (डी). चउरिन्द्रिय जाति नाम कर्म :- जिन जीवों को उपर्युक्त तीन इन्द्रियों के साथ
चक्षुरिन्द्रिय होती है वे चउरिन्द्रिय कहे जाते हैं। जैसे मक्खी, मच्छर, चरेन्द्रिय
भमरा, बिच्छु आदि। पंचेन्द्रि (ई). पंचेन्द्रिय जाति नाम कर्म :- जिन जीवो को उपर्युक्त इन्द्रियों के साथ तिर्वर
श्रोतेन्द्रिय रूप पाँच इन्द्रियाँ होती है उन्हें पंचेन्द्रिय कहते है। जैसे- देव, ऋष्य
मनुष्य, नारकी, गाय, हाथी आदि तिर्यंच जीव। 3. शरीर नाम कर्म :- जिस कर्म के उदय से जीव को शरीर की प्राप्ति होती है उसे शरीर नाम कर्म कहते हैं। यह पांच प्रकार का है
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