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नाम कर्म इस संसार में एक मनुष्य काला-कलूटा-बेडौल, वीभत्स आदि आकृति वाला है तो एक मनुष्य
गुलाब के फूल जैसा सुन्दर एवं चित्ताकर्षक आकृति वाला है। शरीर नाम कर्म को चित्रकार की उपमा दी है।
और शरीर से सम्बन्धित अंग-प्रत्यंग के कण-कण की रचना नाम कर्म द्वारा होती है। जिस कर्म के उदय से जीव विभिन्न गति, जाति, शरीर, रूप, रंग, वर्ण, स्पर्श, आकृति, प्रकृति आदि प्राप्त करता है, उसे नाम कर्म कहते हैं। ___ नाम कर्म को चित्रकार की उपमा दी गयी हैं। जिस प्रकार चित्रकार अनेक प्रकार के अच्छे-बुरे चित्र बनाता है, उनमें विभिन्न रंग भरता है, उनकी विविध आकृतियाँ बनाता है, उसी प्रकार नाम
कर्म भी भिन्न-भिन्न नाम, रूप आकार आकृति-प्रकृति वाले ऐसे शरीर का निर्माण करता है जो एक दूसरे से मेल न खाते हो। यह कर्म जीवात्मा की निज शक्तियों का घात न करने के कारण, आघाती कर्म हैं। आत्मा के अरूपीत्व गुण को ढंक कर रूपी शरीर और उससे सम्बन्धित अंगोपांगादि प्रदान करना नाम कर्म का कार्य हैं। * नाम कर्म की उत्तर प्रकृतियाँ
नाम कर्म की मुख्य दो उत्तर प्रकृतियाँ है - शुभ नाम और अशुभ नाम कर्म । शुभ प्रकृतियाँ पुण्य रूप है और अशुभ प्रकृतियाँ पाप रूप हैं। नाम कर्म की103 प्रकृतियाँ पिंड प्रकृति - 75 प्रत्येक प्रकृति - 8 त्रस दशक - 10 स्थावर दशक
कुल - 103 भेद * पिंड प्रकृति - पिंड का अर्थ होता है - समूह। जिनके दो, तीन, चार आदि अनेक उपभेद होते हैं, अनेक उपभेदों के समूह वाली प्रकृति को पिंड प्रकृति कहते हैं। पिंड प्रकृतियाँ के मुख्य 14 भेद हैं।
1. गति, 2. जाति, 3. शरीर, 4. अंगोपांग, 5. बंधन, 6. संघातन, 7. संघयण, 8. संस्थान, 9. वर्ण, 10. गंध, 11. रस, 12. स्पर्श, 13. आनुपूर्वी, 14. विहायोगति। 1. गति नाम कर्म :- जिस कर्म के उदय से जीव को देव, मनुष्यादि अवस्था प्राप्त होती है, देवादि पर्यायों को प्राप्त करने के लिए उस तरफ गमन-गति प्रवृति करना गति नाम कर्म कहलाता है। इसके चार भेद है :(1). नरक गति नाम कर्म :- अतिशय दुख से परिपूर्ण भव को नरक भव कहते हैं। नरक भव की प्राप्ति करानेवाले कर्म को नरक गति नाम कर्म कहते है।
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