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________________ मारावा 5. अवस्था चिंतन त्रिक : 1. पिंडस्थ अवस्थाः - इसके 3 भेद 1. जन्म 2. राज्य 3. श्रमण 2. पदस्थ अवस्था : 1. केवलज्ञान 3.रुपातीत 1. सिद्धावस्था अवस्था यानी जीवन की घटनाएँ, अष्टप्रकारी पूजा पूर्ण करने के बाद भावपूजा शुरु करने से पूर्व तीर्थंकर के जन्म से लेकर निर्वाण तक की कुल पाँच अवस्थाओं का चिंतन इस त्रिक के द्वारा किया जाता है। 1. पिंडस्थ अवस्था:... 1. जन्मावस्था :- जन्म से पूर्व तीर्थंकर की माता का चौदह महास्वप्नों का देखना, सौधर्मेन्द्र का आसान कंपायमान होना, शक्रस्तव (नमुत्थुणं) से प्रभु की स्तुति करना, जन्म होते ही महासूर्य का प्रकाश की भांति सर्वत्र सुख का प्रकाश होना, जन्म समय जानकर 56 दिक्ककुमारिकाओं का जन्मोत्सव मनाने हर्ष सहित दौड आना, सौधर्मेन्द्र का पंचरुप करके मेरु शिखर पर 64 इन्द्रों सहित क्षीरोदधि के नीर द्वारा 1 लाख 60 हजार कलशों द्वारा जन्मोत्सव मनाना, अभिषेक के बाद कुसुमांजलि से पूजा करना देव दुंदुभि नाद करना, पुनः प्रभु की माता की गोद में स्थापित करते हुए कहना हे रत्नकुक्षी माता ! यह पुत्र आपका है परंतु स्वामी हमारा है, हमारा आधार है। इस तरह जन्मावस्था का चिंतन। 2. राज्यावस्था :- हे राज राजेश्वर प्रभु ! आपने राजकुल में जन्म पाया था, इस भव में आप विशाल सत्ता और समृद्धि के स्वामी थे। बाल्यकाल में अनेक राजकुमार आपके मित्र बने सदा सेवक भाव से रहते थे। इन्द्रियजन्य सुखों की पूर्ण अनुकूलता होने पर भी आप इनसे निर्लिप्त रहें। विशाल राजलक्ष्मी की विद्यमानता में भी आपको भोगी बनने की अपेक्षा योगी बनना प्रिय लगा। विवाह बंधन और राज्यतिलक धारण भी आपके कर्म की कालिमा को दर करने का कारण बना। युवावस्था में ऐसे उत्कष्ट वैराग्य भाव को धारणवाले हे प्रभु ! आपके चरण में वंदन ! इस प्रकार का चिंतन करना चाहिए। 3.. श्रमणावस्था :- राज्यावस्था के चिंतन के बाद प्रभु की श्रमणावस्था का चिंतन इस प्रकार करना चाहिए। हे मुनिश्वर ! आपके दीक्षा के अवसर को जानकर नव लोकांतिक देव जय - जय नंदा, जय - जय भद्दा, आप जय पाओ कहते हुए आपकी सेवा में, उपस्थित होकर कहते हैं, हे स्वामी आप बोध पाओ, आप AAAAA71 AM Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004053
Book TitleJain Dharm Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2011
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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