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________________ 3 . * मुक्ता शक्ति मुद्रा * वचन प्रणिधान * जिन मुद्रा *काया प्रणिधान * दस त्रिक का स्वरुप : जिन मंदिर में प्रवेश करने से बाहर निकलते तक दस बातों का परिपालन करना चाहिए। इन दस बातों के तीन - तीन उप समूह भी है। त्रिक का मतलब तीन। हम इन दस त्रिक तथा उनके कुल उपभेदों का क्रमशः विवेचन करेंगे। 1. निसीहि त्रिक : निसीहि:- निषेध करना, रोकना पहली निसीहि दूसरी निसीहि तीसरी निसीहि . अग्र द्वार पर गर्भ द्वार पर चैत्यवंदन प्रारंभ करने से पहले __ 1. पहली निसीहि :- संसार के समस्त पाप कार्यों के त्यागार्थ प्रथम निसीहि जिनालय के प्रवेश द्वार पर बोली जाती है। 2. दूसरी निसीहि :- जिनालय का हिसाब देखना, पूजारी आदि को कार्य निर्देश करना, पाटे आदि उचित स्थान पर रखना, साफ सफाई, रख - रखाव इत्यादि सभी कार्यों के प्रति श्रावक को सावधानी रखनी चाहिए। यह सब करने के बाद इन कार्यों का भी त्याग करने के लिए गर्भ द्वार पर पहुँचकर दूसरी निसीहि बोलनी चाहिए। 3. तीसरी निसीहि :- अष्ट प्रकारी जिनपूजा पूर्ण करने के बाद चैत्यवंदन प्रारंभ करने के पूर्व द्रव्यपूजा संबंधी कार्यों आदि के भी विचार का त्याग हेतु यह तृतीय निसीहि कहनी चाहिए। 2. प्रदक्षिणा त्रिक : जयणा पूर्वक प्रः उत्कृष्ट भावपूर्वक प्रदक्षिणा त्रिक दक्षिणा :- परमात्मा की दांयी ओर शुरु की जाती है। * तीन प्रदक्षिणा के चार हेतु : 1. अनादि काल से चार गति रुप संसार में परिभ्रमण करती आत्मा के भव भ्रमण को टालने परमात्मा के चारों ओर प्रदक्षिणा दी जाती है। 2. दर्शन, ज्ञान, चारित्र रुपी रत्नत्रय की प्राप्ति के लिए भी परमात्मा की तीन प्रदक्षिणा दी जाती है। 64 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainalitorary.org
SR No.004053
Book TitleJain Dharm Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2011
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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