________________
नैवेद्य
LEDMकलश
उत्पन्न करते हैं। उसी प्रकार मन की शुद्धि में निर्विकार वेश भी कारण बनते हैं। अतः पूजा के वस्त्र शास्त्रों में बताए अनुसार उज्जवल और शुद्ध वस्त्र प्रयोग में लाने चाहिए। उपयोग के बाद प्रतिदिन उनकी सफाई आवश्यक है।
श्रावक 3. मनशुद्धि :- परमात्मा की पूजा करते हुए मन को शुद्ध रखना चाहिए। इसके लिए मन को मलिन करनेवाले कषायों के परिणामों से, दुर्विचारों से दूर रहना चाहिए। सभी सामग्रीयाँ शुद्ध रहे किंतु मन में शुद्धता के भाव न हो तो सब कुछ व्यर्थ हो जायेगा। 4. भूमिशुद्धि :- जिन मंदिर जाते समय मार्ग में एवं जिन मंदिर में प्रवेश के पश्चात् तथा चैत्यवंदन आदि विधि करने के पूर्व जिन मंदिर में रहे कचरे आदि को दुर करना भूमिशुद्धि है। 5. उपकरण शुद्धि :- परमात्मा की पूजा में प्रयुक्त किये जानेवाले सारे उपकरण का निर्माण उच्चश्रेणी की धातुओं से करना जैसे स्वर्ण, रजत, तांबा आदि। उसी प्रकार इन्हें उपयोग में लेने से पूर्व अच्छी तरह से साफ कर लेना चाहिए। परमात्मा के अंगलूछने भी कोमल, उत्तम वस्त्रों से बने होने चाहिए। 6. द्रव्यशुद्धि :- परमात्मा की पूजा में उपयोग करने योग्य सामग्री के क्रम में तथा अभिषेक आदि उत्सव में न्यायोपार्जित धन का उपयोग करना चाहिए। 7. विधिशुद्धि :- परमात्मा की पूजा तथा चैत्यवंदन आदि की शास्त्रोक्त विधिपूर्वक शुद्धभावों के त्रिकरण योग से करनी चाहिए। प्रमाद, अविधि, आशातना आदि दोषों को कही भी प्रवेश करने नहीं देने चाहिए।
* दस त्रिक का चार्ट * 1. निसीहि त्रिक 2. प्रदक्षिणा त्रिक 3. प्रणाम त्रिक 4. पूजा त्रिक * पहली निसीहि * पहली प्रदक्षिणा * अंजलिबद्ध प्रणाम * अंग पूजा * दूसरी निसीहि * दूसरी प्रदक्षिणा । * अर्धावनत प्रणाम * अग्र पूजा * तीसरी निसीहि *तीसरी प्रदक्षिणा * पंचांग प्रणिपात प्रणाम *भाव पजा 5. अवस्था त्रिक 6. दिशात्याग त्रिक 7. प्रमार्जना त्रिक 8. आलंबन त्रिक * पिंडस्थ अवस्था * दायी दिशा त्याग * भूमि प्रमार्जन * जिन बिंब आलंबन * पदस्थ अवस्था * बायी दिशा त्याग * हाथ - पाँव प्रमार्जन * सूत्रों का आलंबन * रुपातीत अवस्था * पीछे की दिशा त्याग * मस्तक प्रमार्जन * सूत्रार्थ आलंबन 9. मुद्रा त्रिक
10. प्रणिधान त्रिक * योगमुद्रा
* मन प्रणिधान
त्रक
63
Jain Education Interational
For Personal 8 Private Use Only
www.janelibrary.org