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________________ 3. मूलनायकजी के तीनों ओर दीवार में स्थापित मंगल जिन बिम्बों को देखकर हम समवसरण में प्रदक्षिणा दे रहे हैं ऐसी भावना करनी चाहिए। 4. परमात्मा का गूंजन करते करते परमात्मा स्वरुप की प्राप्ति कर सकें। 3. प्रणाम त्रिक : 1. अंजलि बद्ध प्रणाम :- परमात्मा का दर्शन करते ही दोनों हाथ जोडकर कपाल पे अंजली लगाकर मस्तक झुकाते हए "नमोजिणाणं' कहकर यह प्रणाम किया जाता है। 2. अर्धावनत प्रणाम :- परमात्मा के गर्भद्वार के पास पहुँचकर कमर तक शरीर झुकाकर दोनों हाथ जोडकर यह प्रणाम किया जाता है। ____ 3. पंचांग प्रणिपात प्रणाम :- शरीर के पाँच अंगों अर्धावनत प्रणाम को जमीन पर स्पर्श कराते हुए किये जानेवाले प्रणाम को पंचांग प्रणिपात कहते हैं। इसका रुढ नाम खमासमणा है। परमात्मा को किये जानेवाले प्रणाम में प्रचंड शक्ति छिपी है। अरिहंत परमात्मा को किया गया एक ही नमस्कार हजारों लाखों भवों के पापों से मुक्त करनेवाला है। इसलिए कहा है - इक्कोवि नमुक्कारो, जिणवर वसहस्स वद्धमाणस्स, संसार सागराओ तारेइ नरं व नारी वा| उत्कृष्ट भाव से किया गया एक नमस्कार नर अथवा नारी को तिरा देता है। यह प्रणाम चैत्यवंदन के समय किया जाता है। 4. पूजा त्रिक : अष्टप्रकारी पूजा के स्थान तीन पूजा दो पूजा तीन पूजा जिन बिंब पर रंग मंडप में बाजोठ पर जिन बिंब के आगे गर्भगृह के बाहर 1. जल पूजा 2. चंदन पूजा 3. पुष्प पूजा 4. धूप पूजा 5. दीपक पूजा 6. अक्षत पूजा 7. नैवेद्य पूजा 8. फल पूजा Arrrrr -65 Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004053
Book TitleJain Dharm Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2011
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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