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संकेत हो, जैसे मैं जब तक गांठ नहीं खोलूंगा तब तक मेरे प्रत्याख्यान है।
10. अद्धा :- अद्धा का अर्थ काल है। समय विशेष की मर्यादा निश्चित करके जो प्रत्याख्यान किया जाता है वह अद्धा प्रत्याख्यान हैं। इस प्रत्याख्यान के अंतर्गत 1. नवकारसी 2. पोरसी 3. परिमुड्ढ 4. एकासणा 5. एकलठाणा 6. आयंबिल 7. उपवास 8. दिवसचरिम अथवा भवचरिम 9. अभिग्रह और 10. नीवी ये दस पच्चक्खाण आते हैं।
जिस समय गुरु पच्चक्खाण कराते हैं उसमें गुरु पच्चक्खाई शब्द कहते हैं, उस समय पच्चक्खाण लेनेवालों को पच्चक्खामि शब्द कहना चाहिए। अंत में करानेवाले वोसिरे कहते हैं तो करनेवाले को अवश्य वोसिरामी कहना चाहिए।
* प्रत्याख्यान के दोष :- आचार्य भद्रबाहुस्वामी ने प्रत्याख्यान के तीन दोष बताये हैं।
1. अमूक व्यक्ति ने पच्चक्खाण ग्रहण किया है, जिसके कारण उसका समाज में आदर हो रहा है, मैं भी इसी प्रकार का पच्चक्खाण करूं, जिससे मेरा आदर हो, ऐसी राग भावना को लेकर पच्चक्खाण करना ।
2. दूसरों के प्रति दुर्भावना से उत्प्रेरित होकर प्रत्याख्यान करना, मैं ऐसा पच्चक्खाण करूं, जिसके कारण जिन्होंने प्रत्याख्यान ग्रहण किया है, उनकी कीर्ति धुंधली हो जाए। इस प्रकार के पच्चक्खाण में तीव्र द्वेष भाव प्रकट होता है।
3. इस लोक में मुझे यश प्राप्त होगा और परलोक में भी मेरे जीवन में सुख और शांति मिलेगी, इस प्रकार की भावना से प्रत्याख्यान करना। इसमें यश की अभिलाषा, वैभव प्राप्ति की कामना आदि रही हुई है। * पच्चक्खाण के आगारों का अर्थ :
ग्रंथों में दो प्रकार के प्रत्याख्यानों का उल्लेख मिलता है 1. अशुद्ध प्रत्याख्यान और 2. शुद्ध प्रत्याख्यान । शुद्ध प्रत्याख्यान उसे कहते हैं। प्रत्याख्यान करनेवाले और करानेवाले आगारों का अर्थ सुचारु रुप से जानते हों। आगार का अर्थ अपवाद माना गया है। अपवाद का अर्थ है- यदि किसी विशेष स्थिति में त्याग की हुई वस्तु सेवन कर ली जाए या करनी पड जाए तो प्रत्याख्यान भंग नहीं होता है। अतएव व्रत अंगीकार करते समय आवश्यक आगार रखना चाहिए। ऐसा न करने पर व्रत भंग की संभावना रहती है।
1. अण्णत्थाभोगेणं :- अत्यंत विस्मृति, भूल जाने के कारण कोई भी वस्तु भूलकर मुख में डाली हो परंतु ज्ञान होने पर तत्काल उसको विवेक पूर्वक परठ देवें तो पच्चक्खाण में दोष नहीं लगता। किंतु जानने के बाद भी भक्षण करे तो पच्चक्खाण निश्चय भंग होता है।
2. पच्छण्णकालेणं : मेघ, धूल, ग्रहण आदि के कारण या पर्वत की आड में सूर्य के ढक जाने से, परछाई के न दिखने के कारण, भ्रमपूर्वक पच्चक्खाण का समय पूर्ण हुआ जानकर कदाचित पोरसी आने के पहले ही पच्चक्खाण पार लेने पर व्रत भंग नहीं होता ।
3. दिसामोहेणं :- दिशा का भ्रम हो जाने से अर्थात् पूर्व दिशा को पश्चिम दिशा जानकर काल समाप्ति से पहले ही भोजन कर ले तो व्रत खंडित नहीं होता।
4. सहसागारेणं :- अकस्मात् बिना विचारे या अचानक कोई कार्य हो जाय उसे सहसागार कहते हैं। जैसे गाय दुहते समय अचानक दूध के छींटे या स्नान करते समय सहसा उछलकर पानी के छींटे मुँह में पड जाना सहसाकार है। ऐसा हो जाने पर पच्चक्खाण भंग नहीं होता ।
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