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1. मूलगुण प्रत्याख्यान यावज्जीवन के लिए ग्रहण किया जाता है इसके दो भेद हैं :
* सर्व मूल गुणप्रत्याख्यान :- साधु - साध्वी के पाँच महाव्रतों का प्रत्याख्यान।
* देश मूल गुण प्रत्याख्यान :- श्रावक - श्राविका के पाँच अणुव्रतों के प्रत्याख्यान। 2. उत्तर गुण प्रत्याख्यान :- प्रतिदिन गृहण किया जाता है या कुछ दिनों के लिए | इसके भी दो भेद हैं। ___* सर्व उत्तर गुण प्रत्याख्यान :- उपवास, आयंबिल, एकासना आदि के पच्चक्खाण जो गृहस्थ और साधु दोनों के लिए है।
* देश उत्तर गुण प्रत्याख्यान :- गृहस्थ के तीन गुणव्रतों एवं चार शिक्षाव्रतों के पच्चक्खाण।
भगवती सूत्र, आवश्यक नियुक्ति, पच्चक्खाण भाष्य आदि में प्रत्याख्यान के दस भेद हैं जिसका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है।
1. अनागत :- अनागत अर्थात् भविष्यकाल जिस पच्चक्खाण को भविष्य में करने का है। उस पच्चक्खाण को किसी कारण वश पहले ही कर लेना पडे उसे अनागत प्रत्याख्यान कहते हैं। जैसे पर्युषण आदि पर्व में जो तप करना चाहिए, वह तप पहले कर लेना। जिससे कि पर्व के समय, वृद्ध, ग्लान, तपस्वी आदि की सेवा की जा सके। .
2. अतिक्रांत :- कारणवश नियत समय के बाद तप करना। उसे अतिक्रांत प्रत्याख्यान कहते हैं। पर्व तिथि के पश्चात् पर्व का तप करना। जो तप पर्व के दिनों में करना चाहिए, वह तप पर्व के दिनों में सेवा आदि का प्रसंग उपस्थित होने से न कर सकें तो उसे बाद में अपर्व के दिनों में करना चाहिए।
3. कोटी सहित :- जो तप पूर्व में चल रहा हो, उस तप को बिना पूर्ण किये ही अगला तप प्रारंभ कर देना। जैसे उपवास का पारणा किये बिना ही अगला तप प्रारंभ करना। ___4. नियंत्रित :- जिस पच्चक्खाण को निश्चयपूर्वक किया जाता है। जिस दिन प्रत्याख्यान करने के विचार से उस दिन रोग आदि विशेष बाधाएँ उपस्थित हो जाए तो भी उन बाधाओं की परवाह किये बिना प्रत्याख्यान धारण कर लेना। यह तप वज्रऋषभनाराच संहनन धारी साधु ही कर सकते हैं।
5. साकार :- आगार सहित पच्चक्खाण करना। मन से अपवाद की कल्पना करके जो त्याग किया जाता है। 6. निराकार :- जिस तप में अपवाद रुप आगार न रखा जाए उसे निराकार पच्चक्खाण कहते हैं।
7. परिमाणव्रत :- जिसमें दत्ति आदि का परिमाण किया जाए। साधु गोचरी के लिए जाते समय या आहार ग्रहण करते समय यह प्रतिज्ञा ग्रहण करते है कि मैं आज इतना ही ग्रास ग्रहण करुंगा अथवा भोजन लेने के लिए गृहस्थ के यहाँ जाते समय मन में यह विचार करना कि अमुक प्रकार का आहार प्राप्त होगा तभी मैं ग्रहण करुंगा, अन्यथा नहीं।
8. नीरविशेष :- जिस पच्चक्खाण में अशन, पान, खादिम और स्वादिम इन चारों प्रकार के आहार का पूर्ण रुप से त्याग करना होता है उसे नीरविशेष प्रत्याख्यान कहते हैं।
9. सांकेतिक :- जो पच्चक्खाण संकेत पूर्वक किया जाता है। जिसमें गांठ आदि यथाविधि खोलने का
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