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________________ 7. गर्दा :- गुरुओं के समक्ष निःशल्य होकर अपने पापों को प्रकट करना। 8. शुद्धि :- शुद्धि का अर्थ निर्मलता है। प्रतिक्रमण आलोचना, निंदा आदि के द्वारा आत्मा पर लगे दोषों से आत्मा को शुद्ध बनाए, इसलिए उसे शुद्धि कहा गया है। अनुयोगद्धारसूत्र में प्रतिक्रमण के दो प्रकार बताए गये हैं - द्रव्यप्रतिक्रमण और भावप्रतिक्रमण। द्रव्य प्रतिक्रमण में साधक एक स्थान पर स्थिर होकर बिना उपयोग के यशप्राप्ति आदि की अभिलाषा से प्रतिक्रमण करता है। यह प्रतिक्रमण यंत्र की तरह चलता है, उसमें चिंतन का अभाव होता है। पापों के प्रति मन में ग्लानि नहीं होती। वह पुनः पुनः उन गलतियों को करता रहता है। वास्तविक दृष्टि से जैसी शुद्धि होनी चाहिए, वह उस प्रतिक्रमण से नहीं हो पाती है। _भाव प्रतिक्रमण वह है, जिसमें साधक के अन्तर्मानस में पापों के प्रति तीव्र पश्चाताप होता है। वह सोचता है, मैंने इस प्रकार गलतियाँ क्यों की ? वह दृढ निश्चय के साथ उपयोगपूर्वक उन पापों की आलोचना करता है। भविष्य में वे दोष पुनः न लगे। इसके लिए दृढ संकल्प करता है। इस प्रकार भाव प्रतिक्रमण वास्तविक प्रतिक्रमण है। ___साधारणतया यह समझा जाता है कि प्रतिक्रमण अतीतकाल में लगे हुए दोषों की परिशुद्धि के लिए है। पर आचार्य भद्रबाहुस्वामी ने बताया की प्रतिक्रमण केवल अतीतकाल में लगे दोषों की ही परिशुद्धि नहीं करता अपितु वह वर्तमान और भविष्य के दोषों की भी शुद्धि करता है। अतीतकाल में लगे हुए दोषों की शुद्धि तो आलोचना प्रतिक्रमण में की ही जाती है, वर्तमान में भी साधक संवर साधना में लगे रहने से पापों से निवृत्त हो जाता है। साथ ही प्रतिक्रमण में वह प्रत्याख्यान ग्रहण करता है जिससे भावी दोषों से भी बच जाता है। भूतकाल के अशुभ योग से निवृत्ति, वर्तमान में शुभ योग में प्रवृत्ति और भविष्य में भी शुभ योग में प्रवृत्ति करुंगा, इस प्रकार वह संकल्प करता है। ____ काल की दृष्टि से प्रतिक्रमण के पांच प्रकार भी बताए हैं - 1. दैवसिक 2. रात्रिक 3. पाक्षिक 4. चातुर्मासिक और 5. सांवत्सरिक 1. दैवसिक :- दिन के अंत में किया जानेवाला प्रतिक्रमण दैवसिक है। 2. रात्रिक :- रात्री के अंत में किया जानेवाला प्रतिक्रमण रात्रिक है। 3. पाक्षिक :- पंद्रह दिन के अंत में पापों की आलोचना करना पाक्षिक प्रतिक्रमण है। 4. चातुर्मासिक :- चार मास में हुए पापों की शुद्धि के लिए आषाढ, कार्तिक एवं फाल्गुन शुक्ला चतुर्दशी/पूर्णिमा के दिन जो प्रतिक्रमण किया जाता है वह चातुर्मासिक है। ____5. सांवत्सरिक :- वर्ष संबंधी पापों की शुद्धि के लिए भाद्रशुक्ल चतुर्थी/पंचमी के दिन संध्या को जो प्रतिक्रमण किया जाता है वह सांवत्सरिक है। यहाँ पर यह सहज जिज्ञासा हो सकती है कि जब साधक प्रतिदिन प्रातःसायं नियमित प्रतिक्रमण करता है, फिर पाक्षिक, चातुर्मासिक और सांवत्सरिक प्रतिक्रमण की क्या आवश्यकता है ? समाधान- प्रतिदिन मकान की सफाई की जाती है तथापि पर्व दिनों में विशेष सफाई की जाती है, वैसे ही प्रतिदिन प्रतिक्रमण में - 51 ... Jain Education International For Personal Private Use Only swww.jainalitirary.org
SR No.004053
Book TitleJain Dharm Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2011
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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