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________________ "दिवसे दिवसे लक्खं देइ सुवन्नस्स खंडियं एगो। एगो पूण सामाइय करेइ न पहुप्पए तस्स।।" अर्थात् कोई प्रतिदिन लाख सोने की मोहरें दान करें और कोई एक सामायिक करें तो सामायिक करनेवाले की बराबरी में वह लाख मोहरों का दान करनेवाला नहीं हो सकता। कहीं कहीं ऐसा भी कहा गया है कि कोई लाख मोहरों का दान लाख वर्ष तक नित्य करता रहे तो भी एक सामायिक की बराबरी नहीं हो सकती। क्योंकि करोड जन्म तक उत्कृष्ट तप की साधना करने पर भी जो कर्म नष्ट नहीं होते वे कर्म सामायिक में उत्कृष्ट भाव में लीन साधक कुछ ही क्षणों में नष्ट कर देता है। आवश्यक चूर्णि में भी कहा है कि जब सर्व विरति सामायिक करने की शक्ति न हो तो देशविरति सामायिक ही कई बार करनी चाहिए। आत्मकल्याण चाहनेवालों को नित्य समय निकालकर सामायिक अवश्य करनी चाहिए। शास्त्रों में एक सामायिक का लाभ 925925925 3/8 पल्योपम देव आयुष्य का बंध बताया गया है। ___पूणिया श्रावक की सामायिक तो शास्त्र प्रसिद्ध है। वे प्रतिदिन सामायिक करते थे। उनकी एक सामायिक का मूल्यांकन करना भी असंभव था भगवान महावीर स्वामी ने समोसरण में श्रेणिक राजा के सन्मुख अपने श्रीमुख से पूणिया श्रावक की सामायिक की प्रशंसा की थी। इससे स्पष्ट है कि उनकी सामायिक कितनी श्रेष्ठ थी। * सामायिक के 32 दोष :- सामायिक साधना में साधक को अत्यंत जागरुक रहना चाहिए। उसे मन, वचन और काया के दोषों से बचना चाहिए। सामायिक के कुल 32 दोष बताये हैं। जिसका विवेचन जैन धर्म दर्शन (भाग 2) के सूत्र विभाग में सामायिक पारने के सूत्र (पेज नं. 88) में किया गया है। 45 Jain Education International For Personala PrivateUsmonly saywritinelibrary.oro
SR No.004053
Book TitleJain Dharm Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2011
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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