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________________ श्रावक - श्राविका ऐसा चतुर्विध संघ की स्थापना के बाद शासन की विद्यमानता में जो सिद्ध हो, जैसे जंबुस्वामी आदि। 4. अतीर्थ सिद्ध :- तीर्थ की स्थापना के पहले या तीर्थ विच्छेद के बाद सिद्ध हो जैसे मरुदेवी माता आदि। 5. गृहस्थ लिंग सिद्ध :गृहस्थ वेश में सिद्ध हो, जैसे मरुदेवी माता। 6. अन्य लिंग सिद्ध :- तापस आदि अन्य धर्म के वेश में सिद्ध हो, जैसे वक्कलचीरी आदि। 7. स्वलिंग सिद्ध :- साधु वेश में सिद्ध हो जैसे जैन मुनि। साधु 8. स्त्रीलिंग सिद्ध :- स्त्री शरीर से मोक्ष जावे जैसे चंदनबाला आदि। 9. पुरुषलिंग सिद्ध :- पुरुष शरीर से मोक्ष जावे, जैसे गौतमस्वामी आदि। करकंडू 10. नपुंसक लिंग सिद्ध :- नपुंसक शरीर से मोक्ष जावे जैसे गांगेय आदि। 11. प्रत्येक बुद्ध सिद्ध :- वृद्ध बैल आदि किसी बाह्य निमित्त से स्वतः बोध पाकर मोक्ष जावे, जैसे करकंडु मुनि आदि। 12. स्वयं बुद्ध सिद्ध :- किसी बाह्य निमित्त के बिना, तथा गुरु आदि के उपदेश के बिना कर्म की लघुता के कारण अपने आप स्वतः वैराग्य पाकर मोक्ष जावे, जैसे कपिल केवली आदि। 13. बुद्ध बोधित सिद्ध :- दूसरे के उपदेश से वैराग्य पाकर मोक्ष जावे, जैसे वायुभूति गणधर आदि। orrn..135 For Per INTEasuatrainiriternational 0 0.00 v ate Use Only www.jainelibrary.org,
SR No.004053
Book TitleJain Dharm Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2011
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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