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________________ RATH 4 * द्वितीय वाचना:आगमों की द्वितीय वाचना भगवान महावीरस्वामी के निर्वाण के लगभग 300 वर्ष पश्चात् उडीसा के कुमारी पर्वत पर सम्राट खारवेल के काल में हुई थी। इस वाचना के संदर्भ में विशेष जानकारी प्राप्त नहीं होती है - मात्र यही ज्ञात होता है कि इसमें श्रुत का संरक्षण का प्रयत्न हुआ था। उस युग में आगमों के अध्ययन अध्यापन की परंपरा गुरु-शिष्य के माध्यम से मौखिक रुप में ही चलती थी। * तृतीय वाचना : आगम संकलन का तीसरा प्रयत्न वीर निवार्ण के 827 और 840 के बीच हुआ। प्रथम आगम वाचना में जो ग्यारह अंग संकलित किये गये, वे गुरु - शिष्य क्रम से शताब्दियों तक चलते रहे। कहा जाता है, फिर बारह वर्षों का भयानक दुर्भिक्ष पडा, जिसके कारण अनेक श्रमण कालधर्म हो गए। दुर्भिक्ष का समय बीता। जो श्रमण बच पाये थे, उन्हें श्रुत के संरक्षण की चिंता हुई। उस समय आचार्य स्कन्दिल युग प्रधान थे। उनके नेतृत्व में मथुरा के आगम वाचना का आयोजन हुआ। आगमवेत्ता मुनि दर - दर से आये। जिसको जो याद था उसके आधार पर पुनः संकलन किया गया और उसे व्यवस्थित रुप दिया गया। यह वाचना मथुरा में हुई, अतः इसे माधुरी वाचना कहा जाता है। * चतुर्थ वाचना : चतुर्थ वाचना तृतीय वाचना के समकालिन समय ही है। जिस समय उत्तर - पूर्व और मध्य भरतक्षेत्र में विचरण करनेवाले मुनि संघ मुथरा में एकत्रित हुए, उसी समय दक्षिण - पश्चिम में विचरण करनेवाले मुनि संघ वल्लभीपुर, सौराष्ट्र में आर्य नागार्जुन के नेतृत्य में एकत्रित हुए। उस समय वहाँ आर्य नागार्जुन के नेतृत्व में एक मुनि सम्मेलन आयोजित हुआ और विस्मृत श्रुत को व्यवस्थित रुप दिया गया। अतः यह नागार्जुन वाचना कहलाती है। वल्लभीपुर में संपन्न होने के कारण इसे वल्लभी वाचना के नाम से भी जाना जाता है। * पंचम वाचना:___माथुरी और वल्लभी वाचना के 158 वर्ष पश्चात् HARIHSATH यानी वीर निर्वाण के 980वें वर्ष में वल्लभीपुर में पुनः उस युग के महान् आचार्य देवर्द्धिगणी क्षमाश्रमण के नेतृत्व में पाँचवी वाचना आयोजित हुई। आर्य देवर्द्धिगणी समयज्ञ थे। उन्होंने देखा, अनुभव किया कि अब समय बदल रहा है। स्मरणशक्ति दिन - प्रतिदिन 17 Jain Education international For Personal & Private Use only www.jainelibrary.org
SR No.004053
Book TitleJain Dharm Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2011
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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