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क्षीण होती जा रही है। समय रहते यदि श्रुत की सुरक्षा का उपाय नहीं खोजा गया तो उसे बचा पाना कठिन होगा। आगम साहित्य को स्थायित्व देने की दृष्टि से उनके निर्देशन में आगम लेखन का कार्य प्रारंभ हुआ। उस समय माथुरी और वल्लभी दोनों ही वाचनाएँ उनके समक्ष थी। दोनो परंपराओं के प्रतिनिधि आचार्य एवं मुनिजन भी वहाँ उपस्थित थे। देवर्द्धिगणी ने माथुरी वाचना को प्रमुखता प्रदान की और वल्लभी वाचना को पाठान्तर के रुप में स्वीकार किया। माथुरी वाचना के समय भी आगम ताड - पत्रों पर लिखे गये थे। उन्हें सुव्यवस्थित करने का काम देवर्द्धिगणी ने किया। जैसा कि कहा है -
बलहीपुरम्मि नयरे, देवढिडय् महेण समण - संघेण।
पुत्थइ आगमु लिहिओ, नवसय असी सयाओ वीराओ।। इससे स्पष्ट होता है कि श्रमण संघ ने देवर्द्धिगणी के निर्देशन में वीर निर्वाण 980 में आगमों को पुस्तकारुढ (लिखवाना) किया था। आज जैन शासन में जो आगम निधि सुरक्षित है, उसका श्रेय देवर्द्धिगणी क्षमाश्रमण के प्रयत्नों को ही जाता है। इस प्रकार देवर्द्धिगणी क्षमाश्रमण सर्वप्रथम आगमों को पुस्तकारुढ किया और संघ के समक्ष उसका वाचन किया।
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