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नहीं, अनेक बार बचाए थे। और वे यहीं मानते थे कि गुरुदेव के प्रताप से ही उन्हें यह राजगद्दी मिली है। ऐसी गुरु भक्ति व धर्म पर अटूट श्रद्धा के कारण ही उनका परमार्हत विरुध्वप सार्थक था।
एक बार जब देवपतन में समुद्र तट पर स्थित सोमनाथ के मंदिर के जीर्णोद्धार का कार्य जब तेजी से नहीं बढ रहा था तो राजा कुमारपाल ने गुरुदेव हेमचन्द्राचार्य से उपाय बताने की विनंती की। गुरुदेव ने कहा - कोई व्रत धारण करो, व्रत पालन से पुण्य बढता है और कार्य जल्दी पूरा होता है। कुमारपाल ने प्रसन्न होकर मांसाहार और मदिरापान, जीवनपर्यंत छोड़ने का व्रत लिया। इस प्रकार श्री हेमचन्द्राचार्य के संपर्क से कुमारपाल महाराजा ने अपना जीवन ही नहीं बल्कि समग्र गुजरात में भी अहिंसा धर्म का प्रचार किया। उनके अपने राज्य में.....
* ग्यारह लाख घोडों को, ग्यारह सौ हाथियों को व अस्सी हजार गाय आदि को पानी छानकर ही पिलाया जाता था।
* खुद के मुँह से मार यह
शब्द भी निकले तो दूसरे दिन उपवास करते थे।
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* झूठ बोले जाने पर दूसरे
2 दिन आयंबिल करते थे।
* चातुर्मास में एकासना करते और सिर्फ आठ द्रव्य लेते थे।
* चातुर्मास में मन - वचन काया से ब्रह्मचर्य का पालन करते थे, भंग होने पर दूसरे दिन उपवास करते थे। * उन्होंने गुरुदेव के पास बारह व्रत लिये थे।
* गुरुदेव के पास बैठकर ग्रन्थों का अध्ययन करते थे और बडी उम्र में भी संस्कृत व्याकरण पढते थे।
* प्रतिदिन परमात्मा के
दर्शन
पूजन व स्तवना
करते थे। उनके साथ
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1800 श्रेष्ठि सामायिक
करने हेतु जाते थे।
* समग्र गुजरात में सारे कत्लखाने बंद करवा दिए इसलिए कोई बैल गाय - बकरा - सूअर आदि पशुओं की हत्या
नहीं करता था, अपितु कोई जूँ को भी नहीं मार सकता था।
किसी एक सेठ ने जानबूझकर जूँ को मार डाला, अतः कुमारपाल को इसकी सूचना मिलने पर, उसको बुलाकर एक जिनमंदिर बनाने का दण्ड दिया, जो मंदिर पाटण में युकाविहार नाम से प्रसिद्ध हुआ ।
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अमारि
घोषणा
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