SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 126
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परमार्हत महाराजा कुमारपाल महाराजा कुमारपाल इस कलयुग में एक अद्वितीय और आदर्श राजा थे। वे बडे न्यायी, दयालु, परोपकारी, पराक्रमी और पूरे धर्मात्मा थे। चौलुक्य वंश में हुए त्रिभुवनपाल महासत्वशाली थे, उनकी धर्मपत्नी कश्मीरादेवी को धर्म के प्रभाव से समग्र पृथ्वी की रक्षा करूं, इस प्रकार का दोहद उत्पन्न हुआ और नौ महिने पूर्ण होने पर उन्होंने एक सुंदर तंदरुस्त पुत्र को जन्म दिया। उस समय आकाश में देववाणी हुई- यह बालक विशाल राज्य प्राप्त करेगा और धर्म का साम्राज्य स्थापित करेगा। विक्रम संवत् 1149 में कुमारपाल का जन्म दधिस्थली नामक नगरी में हुआ। कुमारपाल के जन्म के समय गुजरात में चौलुक्यवंश का राज्य था। गुजरात के राजा सिद्धराज जयसिंह थे। वे अपने चचेरे भाई के लडके त्रिभुवनपाल को अपने भाई जैसा मानकर उसे मान देते थे, परंतु हेमचन्द्राचार्य से देवी अंबिका के वचन सुने कि - कुमारपाल मेरे राज्य का भोक्ता बनेगा, यह सुनकर उनका मन परिवर्तित हो गया और वैर जागृत होने पर उन्होंने पहले त्रिभुवनपाल को मरवा दिया। अब वह कुमारपाल को मारने के लिए नए नए षडयंत्र रचने लगा। कुमारपाल अपने प्राण बचाने हेतु अपना राज्य छोडकर लूक छिपकर घुमने लगे। कभी खाना मिलता तो कभी केवल पानी नसीब होता। इस प्रकार घूमते हुए वे खंभात पहुंचे। वहाँ श्री हेमचन्द्राचार्य से मिलकर, उन्हें वंदन सत्कार करके अपने संकट के अंत का काल पुछा। गुरुदेव ज्ञानी पुरुष थे, उन्होंने भविष्य में घटनेवाला सत्य सुनाकर कुमारपाल को सत्व और धैर्य रखने को कहा। हेमचन्द्राचार्य ने उदायन मंत्री के द्वारा कुमारपाल को गुप्त जगह छुपाकर रखने को कहा एवं जब गुप्तचर उदायन मंत्री के महल पहुंचे तो उन्होंने स्वयं अपने उपाश्रय के तहखाने में कुमारपाल को छुपाकर उसकी मदद की । भविष्य में होनेवाले असंख्य जीवों के उपकार के लाभ का विचार करके गुरुदेव ने इस प्रकार कुमारपाल को बचाया। गुरुदेव के कथानानुसार सिद्धराज की मृत्यु हुई और वि.सं. 1199 मार्गशीर्ष वद | 4 के दिन कुमारपाल को राजसिंहासन प्राप्त हुआ। इस प्रकार पचास साल के बाद कुमारपाल को पाटण का राजपाठ मिला। राज्य पाने के पश्चात् उन्होंने स्वयं के आपत्तिकाल में सहायता करनेवाले सभी को याद किया, प्रत्येक को बुलाकर उचित उपहार दिए । गुरुदेव हेमचन्द्राचार्य ने कुमारपाल के प्राण एक बार Jain Education International 121 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004053
Book TitleJain Dharm Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2011
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy