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उज्जित :- श्री गिरनार पर्वत पर पहु नेमि जिण :-हे प्रभो नेमिजिना:
भरुअच्छहिं मुणिसुव्वय :- भरुच में विराजित मुनिसुव्रत प्रभो।
जयउ :- आपकी जय हो। वीर :- हे महावीर स्वामी।
सच्चउरि मंडण :साचोर नगर के मंडनरुप।
महुरि पास :मथुरा में विराजित है पार्श्वनाथ प्रभो।
दुह - दुरिअ - खंडण :दुःख और पाप का नाश करनेवाले।
जचिंतामणि - अवरविदेहि तित्थयण
(जकिचि नामतित्थ) (जावति चेड्याई)
अवर ।- अन्य (तीर्थकर) विवेडिं:- महाविवेश क्षेत्र में। तित्यपरा :- तीर्थकर । चितु विस विविसि :- चारों दिशा और विदिशाओं में। मिकेवि:- जो कोई भी। सीआणागय-संपाय :-अतीत-अनागत और भूत, भविष्यत तथा वर्तमानकाल में प्रादुर्भूता
बंदु जिण सवि:- सब जिनों को बंदन करता हूँ।
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1897
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