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* जिसे काटकर उगाने पर फिर से उग जाते हैं।
इन लक्षण वाले साधारण वनस्पतिकाय के एक शरीर में अनंतजीव होते हैं। जैसे आलू, प्याज, गाजर, शकरकंद हरी अदरक आदि । एक आलू में असंख्य शरीर होते हैं और प्रत्येक शरीर में अनंत जीव होते हैं। इस प्रकार कंदमूल के भक्षण में अनंत जीवों का नाश होने से इन्हें अभक्ष्य माना गया है।
* वनस्पतिकाय * 1. प्रत्येक वनस्पतिकाय :- एक शरीर में एक जीव
2. साधारण वनस्पतिकाय :- एक शरीर में अनंत जीव :a. साग :- भूमिकंद, आलू, गाजर, मूली, प्याज, लहसून, वंश - करेला, सूरण, कच्ची ईमली b. भाजी :- पालक की भाजी, वत्थुआ की भाजी, थेग की भाजी, हरी मोथ, किसलय c. पत्रबेल :- अमृतबेल, विराणीबेल, गडूचीबेल, सुक्करबेल, लवणबेल, शतावरीबेल, गिरिकर्णिकाबेल d. औषध :- लवणक, कुंवारपाठा, हरीहल्दी, हरा अदरक, कचूरी e. जंगली वनस्पतियां :- थोर, वज्रकंद, लोढक, खरसईयो, खिलोडीकंद, मशरुम
* अनंतकाय भक्षण से होनेवाली हानियां * * अनंत जीवों के नाश से परभव में जिव्हा मिलना दुर्लभ है। एकेन्द्रिय जाति सुलभता से मिलती है जहां पर असंख्य या अनंत उत्सर्पिणी- अवसर्पिणी काल व्यतीन करना पडता है। * जिन्हें खाने से बुद्धि विकारी, तामसी और जड बनती है। धर्म विरुद्ध आचरण और विचार होता है। अतः ऐसे अनंत जीवों के समूह रूप अनंतकाय का सेवन सर्वथा त्याग कर देना ही श्रेयस्कर है।
*4 फल * X. बहुबीज अभक्ष्य :- जैन दर्शन में वनस्पति के प्रत्येक और साधारण जैसे दूसरे दो भेद बताए गए है।
* बहुबीज वनस्पति :- जिन सब्जियों और फलों में दो बीजों के बीच अंतर न हो व एक दूसरे से सटे । हो। जिनमें गुदा कम और बीज अधिक, जिन फलों और सब्जियों में बीज ठसाठस भरे हो, उन्हें बहुबीज समझना चाहिए। जैसे - खसखस, अंजीर, राजगिरा, कोठीवडा, पंपोटा, टिंबरु आदि।
* अल्प बीज वनस्पति :- जिन फलों में एक बीज के बाद एक परदा हो फिर बीज हो | इस तरह की व्यवस्था हो अथवा बीज के उपर पतली छाल की परत हो उसे बहुबीज नहीं कहते। जैसे काकडी, खरबूजा, पपीता आदि।
बहुबीज के अंदर परत नहीं होने के कारण अंदर हरा अंजीर
जीव पडना संभव है। बहुबीज में विपुल सूक्ष्म बीज होते हैं
और प्रत्येक बीज में अलग अलग जीव है। अतः उनकी
हिंसा होने से बहुबीज अभक्ष्य कहा है और उसका त्याग करमेद
करना उत्तम है। * बहुबीज भक्षण से हानि :
* बहुबीज वाली वस्तुएं पित्तवर्धक है। इसलिए
लड्डूप खसखस
अंजीर
बहबाज
पपाडा
टीमरु
खसखस के डोडवे
बैंगन
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