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________________ कब क्या छोडेंगे? Jain Education International * एक्सपायरी डेट कब ? 1. कार्तिक सुद 15 से फाल्गुण सुद 14 तक खानेलायक पदार्थ भाजीपाला, धनीया, पत्तरवेल के पान, खजूर, खारेक, तिल, खोपरा, बदाम, काजु, चारोली, पीस्ता, किसमिस, अखरोट, खुरमानी आदि सभी प्रकार का सुखा मेवा 2. आषाढ सुद 15 से कार्तिक सुद 14 तक खानेलायक पदार्थ :- बदाम, खोपरा (छाल सहित ) जिस दिन फोडते हैं उसी दिन चल सकता है। घी में तलने से 15 दिन तक चल सकती है। Mother 3. कार्तिक सुद 15 से आषाढ सुद 14 के आठ मास तक खानेलायक पदार्थ :वडी, पापड, खींचिया, सीरावडी 4. आद्रा नक्षत्र से त्याज्य पदार्थ :- कैरी, आम, रायण इत्यादि । केरी, आम आदि चौमासे के बाद काम आ सकते हैं। 1. धूप में बनते आचार :- • केरी, मिर्ची, आदि को नमक मिलाकर धूप में रख देते हैं धूप से पानी धीरे - धीरे सुख जाता है। 3, 5 या 7 बार कडक धूप देने के बाद वनस्पति जब सूखी बंगडी जैसी होती है तो उसे मसाला और तेल में डूबोकर बनाया आचार 1 वर्ष पर्यंत चल सकता है। 2. चूलहे पर बनते आचार :- • मुरब्बा आदि कई आचार चूल्हे पर बनाए जाते हैं। इसमें शक्कर की तीन तार की चासनी होने तक केरी के टुकडे डाल पकाया जाता है। 3. खट्टे रस में बनते आचार: केरी, मिर्च, नींब आदि को खट्टे रस में तीन दिन भिगोकर फिर बाहर निकालकर तीन दिन धूप में सूखाकर एकदम कडक करने के बाद तेल में मसाला डालकर बनाया जाता है। * आचार सेवन से होनेवाली हिंसा : : III. अपक्व आचार अभक्ष्य :- आजकल मानव की स्वादवृत्ति हद से ज्यादा बढ़ गई है। पहले मात्र केरी, मिर्ची, कैर या गुंदे का आचार बनता था। परंतु आजकल तो ककड़ी से लेकर टींडा तक का आचार बनने लगा है। यह बिना खटाई वाले दूसरे दिन और खटाई वाले बिना धूप दिए चौथे दिन अभक्ष्य हो जाते हैं। * आचार के प्रकार * अभक्ष्य आचार में अनेक त्रस जीव (बैक्टेरिया) उत्पन्न होते है और मरते हैं। त्रस जीवों की हिंसा महादोष है। * तेज धूप दिखाए बिना बनाए गए आचार में बेइन्द्रिय जीव उत्पन्न होते हैं। * जूठे हाथ या गीले हाथों से स्पर्श करने पर पंचेन्द्रिय समूर्च्छिम जीव उत्पन्न होते हैं। * सही पद्धति बिना बनाया हुआ कच्चा आचार बोल अथाणा कहा जाता हैं । बोल अथाणां अर्थात् सैंकडों जीवों का विराट जनरल वार्ड समझदार मानव को अनेक त्रस जीवों की हिंसा से बचने के लिए जीवनभर आचार का त्याग करना लाभदायी है। For Personal 50 Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004052
Book TitleJain Dharm Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2011
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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