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________________ PHOTO खोराखाखरा चलित रस फगवारलेलडा N बासी खाना धी II. चलित रस अभक्ष्य :- चलितरस का त्याग यह जैन दर्शन की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता हैं हर एक पदार्थ केसलामत रहने की एक टाईम लिमिट होती है। यह लिमिटपूरी होते ही उन पदार्थों का स्वरुप भी बदलने लगता है। पदार्थका स्वरुप बदलनेपर पदार्थभक्ष्य होनेपर भी अभक्ष्य बन जाता है। * व्याख्या :- जिन पदार्थों का रुप रस, गंध, स्पर्श बदल गया हो, सामान्यतः उसमें एक खराब तरह की गंध आती हो. स्वाद बिड गया होता है और वह वस्तु फूल गयी होती है, वेचलित रस कहलाते हैं। उनमें त्रस जीवों की उत्पत्ति होती है। जैसे सडेहुए पदार्थ, बासी पदार्थ, कालातीत पदार्थ, फूलन आई हुई हो ऐसे चलित रस केपदार्थ अभक्ष्य होने से इनका त्याग करना हितकर है। * चलितरस के प्रकार 1. दूसरे ही दिन अभक्ष्य बने रातबासी पदार्थ 2. 15/20/30 दिन के बाद अभक्ष्य बनते पदार्थ 3. 4/8 मास बाद अभक्ष्य बनते पदार्थ * दूसरे ही दिन अभक्ष्य बने रातबासी पदार्थ :- जिन पदार्थों में पानी का अंश रह जाता है वे सभी पदार्थ बासी कहलाते हैं। पानी का अंश होने के कारण रसजलार के बेइन्द्रिय जीव उत्पन्न होते हैं। उनके खाने से जीव हिंसा का दोष लगता है साथ ही स्वास्थ्य भी बिगडता है। * रातबासी पदार्थ * बाजरी / मक्की / चावल की रोटी, पराठा, रोटली, फलका, भाकरी, पुडला, पुरणपोरी, भजीया, वडा ढोकला, हांडवा,इडली - डोसा, कचोरी, समोसा, दूधपाक, खीर, मलाई, बासुंदी, श्रीखंड, फ्रूटसलाड, दूधी का हलवा, चीकु का हलवा, केरबडी, गुलाब - जामुन, कच्चा मावा, जलेबी, रसमलाई, रसगुल्ला, बंगाली मिठाई, सैका हुआ पापड, पानीवाली चटणी, चावल, खिचडी आदि सब्जी, दाल आदि इडली, डोसा आदि का घोल। * बहुत दिन बाद अभक्ष्य बनते पदार्थ :- जिन पदार्थों को सेककर बनाते हैं, जिन पदार्थों को तलकर बनाते हैं या जिन पदार्थों को चाशनी बनाकर रखते हैं। यह पदार्थ पाक पद्धति के कारण दीर्घ समय तक भी सलामत रह सकते हैं। ऐसे पदार्थों की समय मर्यादा में सीजन के अनुसार परिवर्तन करने में आती है। टाईमलिमिट सीजन के अनुसार ठंडी, गर्मी चौमासे में 30 / 20 / 15 दिन की बताई गई है। ओवरलिमिट हो जाए तो त्याग कर देना चाहिए। समय से पहले भी यदि खराब हो जाए तो त्याग कर देना चाहिए। * सीसनल टाईम लिमिट * 1. शिशिर (ठंडी):- कार्तिक सुद 15 से फाल्गुन सुद 14 तक = टाईम लिमिट 30 दिन 2. ग्रीष्म (गर्मी) :- फाल्गुन सुद 15 से आषाढ सुद 14 तक = टाईम लिमिट 20 दिन 3. वर्षा (चौमासा) :- आषाढ सुद 15 से कार्तिक सुद 14 तक = टाईम लिमिट 15 दिन * बहुत महीनों बाद अभक्ष्य बनते पदार्थ :- कई पदार्थों का प्रकृतिक स्वरुप ही ऐसा होता है कि वे चार - आठ महीने तक चल सकते हैं। कई पदार्थों को तैयार करने कि पद्धति इतनी जोरदार होती है कि वे पदार्थ लम्बे समय तक चल सकते हैं। जैसे पापड, बडी, खींचिया, आचार आदि। bsiteoucatioiriternational A d itionaprivateuse only 1491 www.jainelibrary.org
SR No.004052
Book TitleJain Dharm Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2011
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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