________________ हे प्रभु ! आप मेरी हृदय - कुक्षी में पधारो मेरा सब कुछ ठिक हो जायेगा... आप तो भक्तवत्सल हो... हे नाथ ! जन्म के साथ ही आपने तीनों जगत के सभी जीवों को सुख शाता का अनुभव करवाया। हे विभू ! उत्कृष्ट ऐश्वर्य के होते हुए भी आप रहे विरक्त... ओ वितरागी मेरी आसक्तियों का अंत कब लाओगे.. हे सर्वज्ञ ! आपने इसी जन्म में ही केवलज्ञान द्वारा कैसा अनुपम सुख प्राप्त किया है अनंतज्ञानी मुझे मुक्ति कब दिलवाओगे... हे परमात्मा. आप तो चले गये सिद्धशिलापर हे कृपालु मैं अष्ट कर्मों से मुक्त होकर शाश्वत वास सिद्धशिला स्वस्थान पर कब पहुचुंगा... / Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org