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* लक्ष्मणा साध्वी
आज से 80वीँ चौवीसी के अंतिम तीर्थंकर के शासन में लक्ष्मणा नाम की एक राजकुमारी थी। विवाह के समय शादी के मंडप में ही वह विधवा हो गई । श्रावक धर्म का पालन करती हुई शुभ दिन को उसने दीक्षा अंगीकार की। बाद में अनेक को प्रतिबोध देकर अनेक शिष्याओं की गुरुणी बनी।
एक दिन चिडा - चिडी की संभोग क्रिया देखकर लक्ष्मणा साध्वी विचार करने लगी कि अरिहंत भगवान ने संभोग की अनुमति क्यों नहीं दी ? अथवा भगवान अवेदी थे, अतः वेद वाले जीवों की वेदना उन्हें क्या मालूम ? ऐसा विचार क्षणमात्र के लिए उसे आया। फिर उसे पश्चाताप हुआ मैंने यह गलत विचार किया है, क्योंकि अरिहंत भगवान तो सर्वज्ञ होते हैं। अतः सर्वजीवों की वेदना जान सकते हैं। इस भयंकर विचार की मुझे आलोचना लेनी चाहिए। ऐसा विचार करके उसने आलोचना लेने के लिए प्रयाण किया, परंतु प्रयाण करते ही पैर में कांटा चुभ गया। उस वक्त साध्वीजी के मन में यह विचार अंकुरित हुआ कि यह अपशकून हैं अतः आलोचना लेने पर मैं अधम गिनी जाउंगी। गुरुदेव मुझे कैसी सत्त्वहीन गिनेंगे ? और शल्ययुक्त उचित नहीं है
इत्यादि विचार करके उसने आलोचना दूसरे के नाम से लेने का निर्णय किया। उसने गुरुदेव के पास जाकर पूछा- हे गुरुदेव ! किसी को इस प्रकार का विचार आया हो, तो क्या प्रायश्चित आता है ? (मैंने ऐसा विचार किया यह बात छिपा दी।) उसके पश्चात् 10 वर्ष तक छट्ठ, अट्ठम, चार उपवास पांच उपवास और पारणों में निवी की। 2 वर्ष तक उपवास के पारणे उपवास किये। 2 वर्ष तक भुने हुए धान्य का आहार किया। 16 वर्ष तक मासक्षण किये। 20 वर्ष तक आयंबिल किये। इस प्रकार 50 वर्ष तक घोर तप किया, फिर भी पाप की शुद्धि नहीं हुई। अनागत चौविशी के प्रथम तीर्थंकर के शासन में वह मोक्ष जाएगी। इस प्रकार माया कपट कर शुद्ध आलोचना नहीं ली।
अतः उसका भव भ्रमण बढ गया। अगर उसने मानसिक आलोचना ले ली होती, तो उसे इतना तप नहीं करना पडता और न दुर्गति भी होती । पाप को छिपाने से उसका तप भी सफल नहीं हुआ। अतः मानसिक आलोचना लेकर शुद्ध बनना चाहिए।
आज कुछ जीव वाचिक और कायिक आलोचना ले लेते हैं। जैसे कि अपशब्द बोलें, जीव मारे इत्यादि परंतु मन से जैसे तैसे विचार किये, ऐसी मानसिक आलोचना बहुत कम जीव लेते हैं। मानसिक आलोचना के सिवाय संपूर्ण शुद्धि नहीं होती हैं अतः मानसिक, वाचिक और कायिक तीनों प्रकार से आलोचना लेनी चाहिए। कदाचित् मानसिक आलोचना भूल से रह गई हो, या जानकर रख ली हो तो वापस आलोचना लेनी चाहिए।
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