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________________ राजा बोला :- “ हे बाज ! अगर तुझे इतनी भी तकलीफ सहन नहीं होती है तो यह बिचारा प्राणांत पीड़ा कैसे सह सकेगा ? तुझे तो सिर्फ अपनी भूख ही मिटाना है। अतः तू इसको खाने के बजाय किसी दूसरी चीज से अपना पेट भरले''? बाज बोला :- "हे राजा ! मैं ताजा मांस के सिवा किसी तरह से भी जिंदा नहीं रह सकता हूँ।'' जैसे यह कबूतर मेरे डर से व्याकुल हो रहा है वैसे ही मैं भी भूख से व्याकुल हो रहा हूँ। यह आपकी शरण में आया है। कहिए मैं किसकी शरण में जाऊँ ? अगर आप यह कबूतर मुझे नहीं सौंपेंगे तो मैं भूख से मर जाऊँगा। एक को मारना और दूसरे को बचाना यह आपने कौनसा धर्म अंगीकार किया है ? एक पर दया करना और दूसरे पर निर्दय होना यह कौनसे धर्मशास्त्र का सिद्धांत है ? हे राजा ! मेहरबानी करके इस पक्षी को छोड़िए और मुझे बचाईए। मेघरथ ने कहा :- “हे बाज ! अगर ऐसा ही है तो इस कबूतर के बराबर मैं अपने शरीर का मांस तुझे देता हूँ । तू खा और इस कबूतर को छोड़कर अपनी जगह चला जा।''बाज ने यह बात कबूल की। राजा ने छुरी और तराजु मंगवाये । एक पलडे में कबूतर को रखा और दूसरे में अपने शरीर का मांस काटकर रखा। राजा ने अपने शरीर का बहुत सा मांस काटकर रख दिया तो भी वह कबुतर के बराबर न हुआ । तब राजा खुद उसके बराबर तुलने को तैयार हुए। चारों तरफ हाहाकार मच गया । कुटुंबी लोग जोर - जोर से रोने लगे । मंत्री लोग आँखों में आँसू भरकर समझाने लगे, “महाराज! लाखों को पालनेवाले आप, एक तुच्छ कबुतर को बचाने के लिए प्राण त्यागने को तैयार हुए है, यह क्या उचित है ? यह करोड़ों मनुष्यों की बस्ती आपके आधार पर है, आपका कुटुंब परिवार आपके आधार पर है उनकी रक्षा न कर क्या आप एक कबूतर को बचाने के लिए जान गवायेंगे? महारानियाँ, आपकी पत्नियाँ, आपके शरीर छोडते ही प्राण दे देंगी, उनकी मौत अपने सिरपर लेकर भी, एक पक्षी को बचाने के लिए मनुष्यनाश का पाप सिर पर लेकर भी क्या आप इस कबूतर को बचायेंगे ? और राजधर्म के अनुसार दुष्ट बाज को दंड न देकर, उसकी भूख बुझाने के लिए अपना शरीर देंगे ? प्रभो ! आप इस न्याय - असंगत काम से हाथ उठाईए और अपने शरीर की रक्षा कीजिए । हमें तो यह पक्षी ही छलपूर्ण मालूम होता है। संभव है यह कोई देव या राक्षस हो।" राजा मेघरथ ने गंभीर वाणी से उत्तर दिया :- “मंत्रीजी ! मेरे राज्य की, मेरे कुटुंब की, मेरे शरीर की भलाई एवं राजधर्म की या राजन्याय की दृष्टि से आपका कहना बिलकुल ठीक जान पडता है। मगर इस कथन में धर्मन्याय का अभाव है। राजा प्रजा का रक्षक है। प्रजा की रक्षा करना और दुर्बल को जो सताता हो उसे दंड देना यह राजधर्म है - राजन्याय है। उसके अनुसार मुझे बाज को दंड देना और कबूतर को बचाना चाहिए | मगर मैं इस समय राज्यगद्दी पर नहीं बैठा हूँ, इस समय मैं राजदंड धारण करनेवाला मेघरथ नहीं हूँ। इस वक्त मैं पौषधशाला में बैठा हूँ, इस समय मैं सर्वत्यागी श्रावक हूँ। जब तक मैं पौषधशाला में बैठा हूँ और जब तक मैंने सामायिक ले रखी है तब तक मैं किसी को दंड देने का विचार तक नहीं कर सकता। दंड देने का क्या sannameditattornematishat 16 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004051
Book TitleJain Dharm Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2011
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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