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________________ * 16वें तीर्थंकर भगवान श्री शांतीनाथ का पूर्व भवों का वर्णन * पहला दूसरा तीसरा चौथा पाँचवा छट्ठा सातवाँ आठवाँ नौवां - राजा श्रीषेण - यौगलिक - देव - राजा अमिततेज - देव - बलदेव अपराजित रत्नपुर (जंबुद्वीप - भरत क्षेत्र) उत्तर कुरू (जंबुद्वीप) सौधर्म प्रथम देवलोक रथनुपुर (वैताढ्य गिरी - उत्तर श्रेणी) प्राणत (दसवाँ) देवलोक शुभा (जंबुद्वीप महाविदेह) अच्युत (बारहवाँ) देवलोक रत्नसंचया (जंबु द्वीप - महाविदेह) तीसरा गैवेयक - वज्रायुध - अहमिन्द्र दसवाँ भव ___ जंबुद्वीप के पूर्व महाविदेह की पुष्कलावती विजय में पुंडरीकिणी नगरी थी। वहाँ धनरथ राजा राज्य करते थे। उनके दो रानियाँ प्रियमति व मनोरमा थी। वज्रायुद्ध के जीव ने तीसरे ग्रैवेयक का आयुष्य पूरा कर प्रियमति की कुक्षि से जन्म लिया। नाम रखा गया मेघरथ । मनोरमा से उत्पन्न पुत्र का नाम दृढरथ रखा गया। जब दोनो योवनवस्था को प्राप्त हुए तब उनका विवाह सुमंदिरपुर के महाराज निहतशत्रु की तीन पुत्रियों के साथ हुआ। उनमें प्रियमित्रा एवं मनोरमा का विवाह मेघरथ व छोटी राजकुमारी सुमति का विवाह दृढरथ के साथ संपन्न हुआ। राजा धनरथ ने पुत्र मेघरथ को राज्य देकर वर्षीदान देकर दीक्षा ले ली और तपकर केवलज्ञान पाकर तीर्थंकर पर्याय का उपभोगकर मोक्षलक्ष्मी पायी। मेघरथ के दो पुत्र हुए। प्रियमित्रा से नंदिषेण और मनोरमा से मेघसेन। दृढरथ की पत्नी सुमति ने भी रथसेन नामक पुत्र को जन्म दिया। एक दिन मेघरथ पौषध लेकर बैठा था उसी समय एक कबूतर आकर उसकी गोद में बैठ गया और "बचाओ ! बचाओ' का करुण नाद करने लगा। राजा ने सस्नेह उसकी पीठ पर हाथ फेरा और कहा :- “कोई भय नहीं है। तू निर्भय रह।'' उसी समय एक बाज आया और बोला :- "राजन्! इस कबूतर को छोड़ दो । यह मेरा भक्ष्य है। मैं इसको खाऊँगा।" राजाने उत्तर दिया :- "हे बाज ! यह कबूतर मेरी शरण में आया है। मैं इसको नहीं छोड़ सकता। शरणागत की रक्षा करना क्षत्रियों का धर्म है और तू इस बिचारे को मारकर कौनसा बुद्धिमानी का काम करेगा ? अगर तेरे शरीर पर से एक पंख उखाड़ लिया जाय तो क्या यह बात तुझे अच्छी लगेगी? बाज बोला :- “पंख क्या पंख की एक कली भी अगर कोई उखाड़ ले तो मैं सहन नहीं कर सकता।" .....914 16. Jan Education international For Personal & male Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004051
Book TitleJain Dharm Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirmala Jain
PublisherAdinath Jain Trust
Publication Year2011
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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