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प्राक्कथन
समये - समये साहित्यजगतने केटलाय विद्वानोए पोतानी साहित्यसेवा द्वारा उजागर कर्यु छे. जो के तेमांना केटलाक विद्वानोए स्वमतना के गच्छाघाना भार हेठळ पोतानी विद्वत्ताने शोचनीय करी मूके छे, तो बीजा वळी केटलाक विद्वानो पोतानी आत्मरमणतामां ज स्थिर रहेनारा गच्छवादना - स्वमतना चोखंडामांथी घणा दूर रही अध्यात्मना सर्वोच्च शिखर सुधी पण पहोंचे छे. जेना कविश्री देवचंद्रजी, श्री आनंदघनजी, श्री ज्ञानसारजी आदि ज्वलंत उदाहरणो छे.
प्रस्तुत कृति 'लघुकृति समुच्चय'ना कर्ता कवि श्रीवल्लभजी पण गच्छवादथी पर रहेनारा एक विद्वान कवि छे. खरतरगच्छना समर्थ कवि होवा छतां तेमनी कृतिओमां प्रायः करी क्याय पण गच्छवाद देखातो नथी. उलटु अन्यगच्छीय आचार्यना गुणथी आकर्षाइ तेमणे रचेली 'श्रीविजयदेवमाहात्म्य'नामनी कृति ते काले थता गच्छवादना विवाद प्रत्येनी तेमनी अरुचीनुं एक उदाहरण कही शकाय.
कवि श्रीवल्लभजी'नी १४ लघुकृतिओनो (समुच्चय) संग्रह प्रस्तुत पुस्तकमां प्रकाशित करवामां आवेल छे. व्याकरण, काव्य, अलंकार, कर्मसाहित्य आदि दरेक विषयोमां कविए पोतानी कलम चलावी छे. कविना जीवननो संपूर्ण परिचय संपादकश्रीए प्रस्तावनामां आप्यो ज छे.
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