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भूमिका मुक्त होकर इस दुष्कर साहित्य साधना-व्रत के निर्वहण में सतत संलग्न रहने के लिये अविरत प्रोत्साहित किया है।
अन्त में मेरे आयुष्मान् पुत्र मञ्जुल जैन, पुत्रवधू नीलम जैन, पुत्र विशाल जैन, पौत्री तितिक्षा और पौत्र वर्द्धमान की सतत प्रेरणा से मैं इस कार्य को सम्पन्न कर सका, इसके लिए हृदय से इन सबको आशीर्वाद।
प्रस्तुत ग्रन्थ का कम्प्यूटरीकरण करने में सागर सेठी का भी पूर्ण सहयोग रहा है, अतएव इनको भी आशीर्वाद।
म. विनयसागर
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