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भूमिका
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प्रमाणे लेन-देन की मर्यादा लिखी जाती है। आपके निवास-स्थान धना सुतार की पोल में, जिनालय के वार्षिक दिवस और अन्य प्रसंगों में जब कभी जिमनवार होता है, तब निमन्त्रण-पत्र भी शिवा सोमजी के नाम से दिया जाता है।
(ख) धना सुतार की पोल वर्तमान समय में शिवा सोमजी की पोल के नाम से भी प्रसिद्ध है ।
(ग) सं० सोमजी कारित झवेरीवाड़ा के चौमुखजी की पोल में शान्तिनाथ का चौमुख मन्दिर और हाजा पटेल की पोल के कोने में श्री शान्तिनाथजी का मन्दिर भी वर्तमान में प्राप्त है ।
(घ) सेठ सोमजी शिवाजी का स्वधर्मी वात्सल्य बहुत ही प्रशंसनीय और अनुकरणीय था । एक बार किसी अज्ञात अपरिचित स्वधर्मी - -बन्धु ने विपत्ति के समय आपके ऊपर साठ हजार रुपये की हुंडी कर दी। जब वह हुंडी भुगतान के निमित्त आपके पास आई, तब इनके मुनीम, कर्मचारियों को सारा खाता ढूंढ लेने पर भी हुंडी करने वाले का कहीं नाम तक न मिला । विचक्षण सोमजी को उस हुंडी के गौरपूर्वक देखने मात्र से उस पर अश्रुबिन्दु का दाग देखकर रहस्य समझ में आ गया और अपने किसी स्वधर्मीबन्धु के विपत्ति का अनुभव कर निजी खाते में खरच लिखवा कर सिकार दी। कुछ दिन के पश्चात् वह अज्ञात स्वधर्मी भाई वहाँ आया और आग्रहपूर्वक हुंडी के रुपये जमा करने को प्रार्थना की। किन्तु, सोमजी ने- 'हमारा आपके ( नाम से) पास एक पैसा भी लेना नहीं है' यह कहते हुए रुपया लेना अस्वीकार कर दिया । आखिर संघ की सम्पत्ति से श्री शान्तिनाथ प्रभु का जिनालय - निर्माण कराने में वे समस्त रुपये व्यय कर दिये गए।
(च) सं० सोमजी की वंश परंपरा के व्यक्ति अब भी अहमदाबाद में निवास करते हैं ।
प्राप्त अपूर्ण प्रति स्वोपज्ञ टिप्पणी के साथ १४० पद्य ही प्राप्त है । प्रसादगुणयुक्त रचना में क्लिष्ट शब्दों का प्रयोग भी श्रीवल्लभ बड़ी सरलता के साथ करता है । उदाहरण के लिये सं० शिवाजी का वर्णन पद्य द्रष्टव्य है :" शर्वत्ववश्यं शिवान् स शश्वच्छिवोऽशिवान्याऽऽशु विशां शिवोव ( ? )। यच्छ्रेयसो विश्वसितीह विश्वं, विश्वं यशो यस्य हि शंसतीति ॥ ६० ॥
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