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भूमिका
श्रीजिनभद्रसूरि के करकमलों से करवाई थी ।
सं० योगी की प्रथम पत्नी जसमादे ने अहमदाबाद के तलीयापाडे में सुमतिनाथ का नवीन मन्दिर बनवाया था ।
सं० योगी की दूसरी पत्नी नानी काकी ने जैनशास्त्रों की प्रतिलिपियाँ करवाकर, स्वयं के नाम से अहमदाबाद में ज्ञान भण्डार स्थापित किया था । सं० सोमजी ने सं० १६४४ में युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि की अध्यक्षता में शत्रुञ्जयतीर्थ यात्रा का विशालतम संघ निकाला था।
सं० सोमजी ने सं० १६४८ में हलारास्थान के बन्दियों को द्रव्य देकर कैदखाने से छुड़वाया था ।
सं० सोमजी ने अहमदाबाद के सामलपाडे में सांवला पार्श्वनाथ चैत्य का नवीन निर्माण करवाया ।
सं० सोमजी ने सूत्रधार धना की पोल में नीचे भूमितल पर आदिनाथ भगवान् का और ऊपर चतुर्मुख (चौमुखा ) शान्तिनाथ का विशाल मन्दिर बनवाया और सं० १६५३ में युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि से इस मन्दिर की बड़े महोत्सव के साथ प्रतिष्ठा करवाई थी।
सं० सोमजीने इस प्रकार आठ नये - मन्दिरों का निर्माण करवाया और सिद्धान्त-टीका आदि सर्वशास्त्रों की प्रतिलिपियाँ करवाकर अहमदाबाद में ज्ञानभण्डार स्थापित किया एवं खरतरगच्छ की सर्वत्र उन्नति की थी । सं० सोमजी के सम्बन्ध में अन्य उल्लेख
संघपति सोमजी के संबंध में अन्य ग्रन्थों में जो उल्लेखनीय विशेष बातें प्राप्त होती हैं वे निम्नलिखित हैं:
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१. शीलविजयकृत तीर्थमाला के अनुसार संघपति सोमजी शिवा न केवल प्राग्वाटवंशीय ही हैं अपितु विश्व प्रसिद्ध नेमिनाथ मन्दिर, आबू के निर्माता महामात्य वस्तुपाल तेजपाल के वंशज है:
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वस्तुपाल मन्त्रीश्वर- वंश, शिवा सोमजी कुल - अवतंश । शत्रुंजय उपरि चौमुख कियउ, मानव-भव लाहो तिण लियउ ॥ २. क्षमाकल्याणोपाध्यायकृत पट्टावली के अनुसार सोम और शिवा प्रारम्भ में गरीब थे और चिमड़े का व्यापार करते थे । आचार्य जिनचन्द्रसूरि के चमत्कार के प्रभाव से ये धनाढ्य हो गये ।
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