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________________ प्रस्तावना प्रस्तुत संग्रह ग्रंथ में दार्शनिक अभ्यासु वर्ग को तुलनात्मक अभ्यास के लिए उपयोगी जैन, वेदान्त, मीमांसक (जैमिनि), नैयायिक, वैशेषिक, सांख्य और योगदर्शन के सूत्रात्मक ग्रंथो का प्रथम विभाग में समावेश किया है। एवं श्री जैनाचार्यों तथा श्री जैन मुनिवरो के द्वारा विरचित षड्दर्शन विषयक कृतिओं का द्वितीय विभाग में समावेश किया है। "षड्दर्शन समुच्चय" मूलग्रंथ १४४४ ग्रंथ के रचयिता पू.आ.भ.श्री हरिभद्रसूरिजी म. का है। इसके उपर "तर्करहस्य दीपिका" नाम की प्रसिद्ध बृहद्वृत्ति की रचना पू.आ.भ.श्री गुणरत्नसूरिजी म. ने की है। बृहद्वृत्ति सहित मूलग्रंथ की हिन्दी व्याख्या (भावानुवाद) दो भाग में अलग ग्रंथ के रुप में यह ग्रंथ के साथ सन्मार्ग प्रकाशन (अहमदाबाद) के द्वारा प्रकाशित हुआ है। इसलिए इस संग्रहग्रंथ में बृहवृत्ति का समावेश किया नहीं है। तपागच्छाधिराज पूज्यपाद आचार्य देवेश श्रीमद् विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा के साम्राज्यवर्ती तपस्वी पू. साध्वीवर्या श्री सुनितयशाश्रीजी म. के सुशिष्या विदुषी पू.साध्वीवर्या श्री ज्ञानदर्शिताश्रीजी म. ने इस ग्रंथ के प्रुफ संशोधन एवं संकलन आदि कार्य में सुंदर सहायता की है। उनकी निःस्वार्थ श्रुतभक्ति की हार्दिक अनुमोदना । विशेष में, यह संग्रहग्रंथ साधनामार्ग के पथिक के लिए प्रकाशित किया गया है। यह ग्रंथ का कोई भी व्यक्ति आजीविका आदि में उपयोग करे तो Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004048
Book TitleShaddarshan Sutra Sangraha evam Shaddarshan Vishayak Krutaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2010
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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