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________________ 26/9/घ. 41/10/2 40/10/8 37/7/6 22/2/4 26/9/4 13. रवण्णए मंचे जणद्दणु वइट्छ । - सुन्दर मंच पर जनार्दन बैठ गये। 14. अहिणव–णारि-रयणु अवइण्णउ । - अभिनव नारी रत्न अवतीर्ण हुआ। 15. तं वयणु णिसुणेवि दूसण आरुट्सउ । - उस वचन को सुनकर दूषण क्रुद्ध हो गया। 16. णं फग्गुणे बाल-तवणु उइण्णु। - मानो फागुन में बाल सूर्य उदित हुआ। 17. सरीरहो छाय णट्व। - शरीर की कान्ति नष्ट हो गई। 18. अज्जु जमहो सिरु फुटु। - आज यम का सिर फूट गया। 19. राम-सेण्णु तहो उवरि पयट्टउ । - राम की सेना उस पर ठहर गई। 20. विहीसणु राणउ मणेण विसण्णु । - विभीषण राजा मन में दुखी हुआ। 21. णं कुल-सेलु वज्जें समाहउ। - मानो कुलपर्वत वज्र से आहत हुआ। हयाहं पग्गह तुट्ट। - अश्वों की लगामें टूट गई। 23. पहु पल्लटु। - राजा दशरथ लौट पड़े। 24. जिणु पणवेप्पिणु सो पुरउ णिविउ । - जिन को प्रणाम करके वह सामने बैठ गया। 56/9/8 57/1/2 57/1/3 75/8/6 21/7/1 5/7/9 84] [पउमचरिउ में प्रयुक्त कृदन्त-संकलन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004047
Book TitlePaumchariu me Prayukta Krudant Sankalan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Seema Dhingara
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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