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________________ अकर्मक क्रियाओं से बने हुए अनियमित भूतकालिक कृदन्त के वाक्य-प्रयोग 1. रिसहनाहु कइलासे परिटिउ। 4/13/1 - ऋषभनाथ कैलाश पर्वत पर प्रतिष्ठित हुए। 2. तहो दाहिण-भाए भरहु थक्कु। 1/11/8 - उसके दक्षिण भाग में भरत क्षेत्र स्थित है। 3. ते सव्व कप्पयरु उच्छण्णा। 2/8/3 - वे सारे कल्पवृक्ष नष्ट हो गये। 4. अट्ठ वि पाडिहेर उप्पण्णा। 3/3/10 - आठों ही प्रातिहार्य उत्पन्न हुए। 5. अण्णेत्ते भामण्डलु पसण्णु। 3/3/4 - अन्य स्थान पर भामण्डल प्रसन्न हुआ। 6. कह वि सुर-णन्दणु चुक्कउ। 17/7/2 - किसी प्रकार इन्द्र का पुत्र बच गया। 7. जासु मणि-जडियइँ णव-मुहइँ आसि। 9/4/2 - जिसके मणियों से जड़े हुए नौ मुख थे। 8. पुणु अतुल-धामु जसुम्मउ जाउ । 1/13/1 - फिर अतुल शक्तिवाले यशस्वी उत्पन्न हुए। 9. तोयदवाहणु पाण लएविणु णट्ठा। 5/6/घ. - तोयदवाहन प्राण लेकर भाग गया। 10. वद्धमाणु विउल-महीहरे थिउ । 1/7/6 - वर्द्धमान विपुलाचल पर स्थित हो गये। 11. सो रणमुहे कह वि ण मुउ । 5/6/5 - वह युद्ध के बीच में किसी प्रकार नहीं मरा। 12. ताम दिव्व झुणि विणिग्गय। 3/11/1 - तभी दिव्य ध्वनि निकली। पउमचरिउ में प्रयुक्त कृदन्त-संकलन] [83 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004047
Book TitlePaumchariu me Prayukta Krudant Sankalan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Seema Dhingara
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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