SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 5. भूतकालिक कृदन्त अपभ्रंश भाषा में भूतकाल का भाव प्रकट करने के लिए भूतकालिक कृदन्त का ही प्रयोग किया जाता है। क्रिया में भूतकालिक कृदन्त के प्रत्यय जोड़कर भूतकालिक कृदन्त बना लिये जाते हैं। ये कृदन्त भी वर्तमान कृदन्त की ही भाँति विशेषण का कार्य करते हैं। अर्थात विशेष्य पुल्लिंग/ नपुंसकलिंग/स्त्रीलिंग तथा एकवचन/बहुवचन में है उसी के अनुसार भूतकालिक कृदन्त प्रयुक्त होता है। भूतकालिक कृदन्त के प्रत्ययों का प्रयोग अकर्मक व सकर्मक दोनों प्रकार की क्रियाओं में किया जाता है। जब अकर्मक क्रियाओं में इन प्रत्ययों को जोड़ा जाता है तो इनका प्रयोग कर्तृवाच्य व भाववाच्य में किया जाता है। जब भूतकालिक कृदन्त के प्रत्यय का प्रयोग सकर्मक क्रिया में किया जाता है तब यह कर्तृवाच्य में प्रयुक्त न होकर सिर्फ कर्मवाच्य में प्रयुक्त होता है। आगे अकर्मक क्रियाओं से बने हुए नियमित भूतकालिक कृदन्त एवं उनके वाक्य-प्रयोग तथा सकर्मक क्रियाओं से बने हुए नियमित भूतकालिक कृदन्त एवं उनके वाक्य-प्रयोगों को दर्शाया जा रहा है(क) अकर्मक क्रियाओं से बने हुए नियमित भूतकालिक कृदन्त क्र. कृदन्तयुक्त- क्रिया+कृदन्त- हिन्दी अर्थ सन्दर्भ सं. क्रिया प्रत्यय 1. अच्छिउ अच्छ + अ रहा हुआ 27/14/घ. 2. अच्छियउ अच्छ + अ बैठा हुआ 87/11/3 3. अत्थमिउ अस्थम + अ अस्त हुआ 76/3/1 4. अब्मिडिय अभिड + य । भिड़ गये . 40/7/घ. 5. आणंदिउ आणंद + अ आनंदित हुआ 5/16/1 6. उग्गमिउ उग्गम + अ उदित हुआ 45/11/5 7. उच्छलियइँ उच्छल + य उछल पड़े 52/10/7 अ पउमचरिउ में प्रयुक्त कृदन्त-संकलन ] [53 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004047
Book TitlePaumchariu me Prayukta Krudant Sankalan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Seema Dhingara
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy