________________
1.
(ग) वर्तमान कृदन्त के सभी विभक्तियों के वाक्य-प्रयोग प्रथमा विभक्ति के प्रयोग - कम्पन्तु छणहो चन्दु महागहेण ण मुच्चइ ।
1/3/घ. - काँपता हुआ पूर्णिमा का चन्द्र महाग्रहण से नहीं बच पाता। 2. उग्गन्तउ सूर-बिम्बु सोहइ।
23/12/7 - उगता हुआ सूर्य – बिम्ब शोभता है। 3. कोक्कन्त. रणे हक्कन्त. उभय-वलइँ–अभिट्टइँ। 4/7/घ.
- दोनों सेनाएँ युद्ध में ललकारती हुई, हाँक देती हुई भिड़ गई। 4. जो जीवन्तु पुव्वण्हए पेक्खइ सो अंगार पुंजु अवरण्हए ।
5/2/4 - पूर्वार्द्ध में जो जीता हुआ दिखता है वह अपराह्न में राख का ढेर
रहता है। 5. तिणि वि चवन्ताइँ पच्छिम-पहरे विणिग्गयाइँ। 27/15/1
- बातें करते हुए तीनों ही अन्तिम प्रहर में निकले। द्वितीया विभक्ति के प्रयोग - 1. णासन्तु णवन्तु सत्तु ण हम्मइ ।
7/9/6 - भागते हुए, प्रणाम करते हुए शत्रु को नहीं मारा जाना चाहिए। रावण किण्ण णियहि णन्दन्तइँ सयण।
57/2/4 - रावण, आनन्द करते हुए स्वजनों को क्यों नहीं देखते ? 3. रणे उत्थरन्तु पवण-पुत्तु हउ।
51/14/2 – रण में उछलते हुए हनुमान को आहत कर दिया। 4. णासन्तु णिएवि णिय-साहणु थिउ अग्गए तोयदवाहणु।
52/7/घ.
पउमचरिउ में प्रयुक्त कृदन्त-संकलन]
[47
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org