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________________ 9. तिहुयणु संघारेवि पलउ समारेवि कियन्तें जोइयउ। 37/3/घ. - त्रिभुवन के संहार करने के लिए और प्रलय करने के लिए कृतान्त के द्वारा अवलोकन किया गया। 10. मइं अणुहुंजेवि धर लब्भइ । 39/5/4 - मेरे द्वारा उपभोग करने के लिए धरा प्राप्त की जाती है। 11. तहो बन्धु वहेवि को एत्थु वसइ। 40/15/6 - उसके भाई का वध करने के लिए कौन यहाँ रहता है ? 12. सुग्गीवें अब्मत्थेवि सो पेसिउ। 46/9/7 - सुग्रीव के द्वारा अभ्यर्थना के लिए वह भेजा गया। 13. दहमुह-माणु मलेवि हणुवन्तु आउ । 51/4/5 - रावण का मान दलन करने के लिए हनुमान आया। 14. सा लक्खण परिरक्ख करेविणु थिउ । 67/13/2 - वह लक्ष्मण की रक्षा करने के लिए स्थित हो गई। 15. सो तणूयरि हरेवि गउ। 16/4/7 - वह तनूदरा का हरण करने के लिए गया। 16. हउं रयणायर-जलु पिएवि सक्कमि। 18/2/6 - मैं समुद्र का जल पीने के लिए समर्थ हूँ। 17. लंकेसेण जागु पणासेवि रिउ तासेवि मगहहं पयाण किउ। 15/8/घ. - लंकेश के द्वारा यज्ञ नष्ट करने के लिए और शत्रु को सन्त्रस्त करने के लिए मगध के लिए कूच किया गया। पउमचरिउ में प्रयुक्त कृदन्त-संकलन] [33 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004047
Book TitlePaumchariu me Prayukta Krudant Sankalan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Seema Dhingara
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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