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________________ सकर्मक क्रियाओं से बने हुए संबंधक कृदन्त के वाक्य-प्रयोग 2. 1. णिरवसेसु खलयणु अवहत्थेवि पहिलउ मगहदेसु वण्णमि। 1/4/1 - समस्त खलजनों की उपेक्षा करके पहले मगध देश का वर्णन करता हूँ। तग्गय–मणेण जिणु पणवेप्पिणु तेण पुच्छिउ। . 1/9/8 - तल्लीन मन से जिनवर को प्रणाम करके उसके द्वारा पूछा गया। 3. तं णिसुणेवि णराहिउ घोसइ । 1/12/7 - उसको सुनकर नराधिप घोषणा करता है। ____ 4. जिणिन्दहो जम्मुप्पत्ति जाणेवि अमरिन्द अवरावए चडिउ । 2/1/6 - जिनेन्द्र की जन्मुत्पत्ति जानकर इन्द्र ऐरावत पर सवार हुआ। 5. तं आएसु लहेवि सा गय तेत्तहे। 2/9/7 - इस आदेश को पाकर वह वहाँ गयी। 6. को वि फलइँ तोडेप्पिणु भक्खइ। 2/12/8 - कोई फलों को तोड़कर खाता है। 7. अण्णहुँ देसु विहंजेवि दिण्णउ । 2/14/2 - दूसरों के लिए देश विभक्त करके दे दिया। 8. अवहि पउंजेवि सो तहिं सप्परिवारउ आउ। 2/12/6 - अवधि ज्ञान से जानकर वह वहाँ सपरिवार आया। 9. देवागमणु णिएवि परम-जिणहो वन्दण–हत्तिए सो वि गउ। 6/7/घ. 26] [पउमचरिउ में प्रयुक्त कृदन्त-संकलन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004047
Book TitlePaumchariu me Prayukta Krudant Sankalan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Seema Dhingara
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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