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13. मग्गणगुणठाणेहि य चउदसहि हवंति तह असुद्धणया।
विण्णेया संसारी सव्वे सुद्धा हु सुद्धणया।।
तह
मग्गणगुणठाणेहि [(मग्गण)-(गुणठाण) 3/2] मार्गणास्थान,
गुणस्थान से युक्त अव्यय
और चउदसहि
(चउदस) 3/2 वि चौदह हवंति
(हव) व 3/2 अक होते हैं अव्यय
पादपूर्ति असुद्धणया (असुद्धणय) 5/1 वि अशुद्धनय से विण्णेया (विण्णेय) विधिकृ 1/2 अनि समझे जाने चाहिये *संसारी (मूल शब्द) (संसारी) 1/2 वि संसारी सव्वे
(सव्व) 1/2 सवि सभी सुद्धा (सुद्ध) 1/2 वि
शुद्ध अव्यय
परन्तु सुद्धणया (सुद्धणय) 5/1
शुद्धनय से
अन्वय- असुद्धणया चउदसहि मग्गणगुणठाणेहि य संसारी हवंति तह हु सुद्धणया सव्वे सुद्धा विण्णेया।
अर्थ- अशुद्धनय से चौदह मार्गणास्थान (अन्वेषण स्थान) और (चौदह) गुणस्थान (विकास स्थान) से युक्त (जीव) संसारी होते हैं, परन्तु शुद्धनय से सभी शुद्ध समझे जाने चाहिये।
प्राकृत में किसी भी कारक के लिए मूल संज्ञा शब्द काम में लाया जा सकता है। (पिशलः प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 517)
द्रव्यसंगत
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