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णाणं अट्ठवियप्पं मदिसुदिओही अणाणणाणाणि। मणपज्जयकेवलमवि पच्चक्खपरोक्खभेयं च।।
ज्ञान आठ भेदवाला
मति, श्रुति, अवधि अज्ञानरूप, ज्ञानरूप
णाणं
(णाण) 1/1 अट्ठवियप्पं {[(अट्ठ) वि-(वियप्प)
1/1] वि} मदिसुदिओही [(मदि)-(सुदि)
(ओहि) 1/1] अणाणणाणाणि {[(अणाण) वि-(णाण)
1/2] वि} मणपज्जयकेवलमवि [(मणपज्जयकेवलं)+
(अवि)] [(मणपज्जय)(केवल) 1/1]
अवि (अ) = ही पच्चक्खपरोक्खभेयं {[(पच्चक्ख)-(परोक्ख)
-(भेअ) 1/1] वि} अव्यय
मनःपर्यय,
केवल
प्रत्यक्ष, परोक्ष भेदवाला
और
अन्वय-णाणं अट्ठवियप्पं मदिसुदिओही अणाणणाणाणि मणपज्जयकेवलं अवि पच्चक्खपरोक्खभेयं च।
अर्थ- ज्ञान (अध्यात्म दृष्टि से) आठ भेदवाला (होता है)- मति, श्रुति, अवधि (ये तीनों मिथ्यात्व अवस्था में) अज्ञानरूप (कहे गये हैं) (और) (ये तीनों सम्यक्त्व अवस्था में) ज्ञानरूप (कहे गये हैं)। मनःपर्यय और केवल (ज्ञानरूप) ही (होते हैं)। (ये ज्ञान तार्किक दृष्टि से) प्रत्यक्ष और परोक्ष भेदवाले (हैं) (अवधि, मनःपर्यय और केवलज्ञान प्रत्यक्ष हैं तथा मति, श्रुतिज्ञान परोक्ष हैं)।
द्रव्यसंग्रह
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