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________________ अ०२३ बृहत्कथाकोश / ७५१ शूरदत्तनरेन्द्रोऽपि नागदत्तमुनीश्वरम्। सम्प्राप्य भक्तिसम्पन्नो ननाम कलनिस्वनः॥ ८३ ॥ पुनः पुनः प्रणम्येमं सामन्तैर्बहुभिः समम्। शूरदत्तोऽपि जग्राह दीक्षां दैगम्बरीमसौ॥ ८४॥ चट, चेट और पाण्ड्यराज द्वारा दैगम्बरी दीक्षा ग्रहण किये जाने का वर्णन कर्कण्डमहाराज-कथानक (क्र.५६/पृ.१०१) के अधोलिखित श्लोक में है चटचेटौ समं वीरौ पाण्ड्यराजेन सत्वरम्। दीक्षां दैगम्बरी भव्यौ वीरसेनान्तिके दधौ॥ ४२६ ॥ यशोधर-चन्द्रमतीकथानक (क्र.७३) और गजकुमारकथानक (क्र.१३९) के निम्नलिखित पद्यों में भी राजाओं के द्वारा दैगम्बरी दीक्षा लिये जाने का कथन है यशोधरकुमाराय दत्त्वा राज्यश्रियं नृपः। अभिनन्दनसामीप्ये दीक्षां दैगम्बरीं दधौ॥ ६॥ यशोधर-चन्द्रमती-कथानक। ततः सुवासुनामानं समाहूय स्वनन्दनम्। ददावनन्तवीर्योऽयं निजराज्यमकण्टकम्॥ ३३॥ बाह्यमाभ्यन्तरं सङ्गं हित्वाऽनन्तबलस्तदा। दधौ सागरसेनान्ते दीक्षां दैगम्बरीमरम्॥ ३४॥ गजकुमारकथानक। खण्डश्रीकथानक (क्र.६५ / श्लोक ९०-९१) में राजा रुद्रदत्त के द्वारा तथा नागश्रीकथानक (क्र.६७/ श्लोक ४८-४९) में राजा भगदत्त के द्वारा भी दैगम्बरी दीक्षा ग्रहण किये जोन का उल्लेख है। २. बृहत्कथाकोश में सर्वत्र नग्न मुनि को ही श्रमण कहा गया है, कहीं भी वस्त्रधारी के लिए 'श्रमण' संज्ञा का प्रयोग नहीं हुआ है। यथा 'श्रमणा नग्नरूपिणः।' विष्णुकुमारकथानक / क्र.११ / श्लोक ९। 'नग्नः श्रमणः।' नागदत्तमुनिकथानक/ क्र.२७ / श्लोक ७८ । 'नग्नश्रवणसामीप्यं' यमपाशकथानक /क्र.७४/श्लोक ३६ । 'नग्नश्रमणपार्वे हि।' यमपाशकथानक / क्र.७४ / श्लोक ४४। 'दर्शनेनास्य नग्नस्य।' धान्यकुमारमुनि-कथानक / क्र.१४१ / श्लोक ४८। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004044
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages906
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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