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________________ अ०२० / प्र०१ वराङ्गचरित / ६५९ . "तत्पश्चात् श्रमणा (श्रमणी) आर्जिकाओं के पास जाकर उनकी वन्दना की। फिर वैराग्यभाव से परिणत वरांगियों (सुन्दरियों) ने एकान्त स्थान में जाकर अपने बहुमूल्य आभूषण उतार दिये, श्वेतवस्त्र धारण कर लिये और गुण, शील तथा तपरूपी समीचीन आभूषणों से विभूषित हो, तत्त्वों को हृदयंगम कर जिनमार्ग में प्रवृत्त हो गयीं।" (२९/९३-९४)। __ "उन रानियों को मोक्षमार्ग में प्रवृत्त होते हुए देखकर मन्त्रियों, अमात्यों, पुरोहितों और नगर श्रेष्ठियों की तरुणी पत्नियों के मन में भी वैराग्य उत्पन्न हो गया और रानियों के साथ उन्होंने भी आर्यिकादीक्षा ग्रहण कर ली।" (२९/९५)। ____ इन पद्यों में राजा वरांग की पत्नियों और उनके साथ मन्त्री, पुरोहित आदि की पत्नियों के द्वारा आर्यिकादीक्षा ग्रहण किये जाने का वर्णन है। अतः स्पष्ट है कि आभूषणों का परित्याग और श्वेतवस्त्र धारण उन्हीं के द्वारा किया गया। किन्तु उक्त ग्रन्थलेखक उपर्युक्त पद्यों का निर्देश करते हुए लिखते हैं ___ "वरांगचरित में वरांगकुमार की दीक्षा का विवरण देते हुए लिखा गया है कि 'श्रमण और आर्यिकाओं के समीप जाकर तथा उनका विनयोपचार (वन्दन) करके वैराग्ययुक्त वरांगकुमार ने एकान्त में जाकर सुन्दर आभूषणों का त्याग किया तथा गुण, शील, तप एवं प्रबुद्धतत्त्वरूपी सम्यक् श्रेष्ठ आभूषण तथा श्वेत शुभ्र वस्त्रों को ग्रहण करके वे जिनेन्द्र द्वारा प्रतिपादित मार्ग में अग्रसर हुए।' दीक्षित होते समय मात्र आभूषणों का त्याग करना तथा श्वेत शुभ्र वस्त्रों को ग्रहण करना दिगम्बरपरम्परा के विरोध में जाता है। इससे ऐसा लगता है कि जटासिंहनन्दी दिगम्बरपरम्परा से भिन्न किसी अन्य परम्परा का अनुसरण करनेवाले थे। यापनीयों में अपवादमार्ग में दीक्षित होते समय राजा आदि का नग्न होना आवश्यक नहीं माना गया था। चूँकि वरांगकुमार राजा थे, अतः संभव है कि उन्हें सवस्त्र ही दीक्षित होते दिखाया गया हो। यापनीयग्रन्थ भगवतीआराधना एवं उसकी अपराजिताटीका में हमें ऐसे निर्देश मिलते हैं कि राजा आदि कुलीन पुरुष दीक्षित होते समय या संथारा ग्रहण करते समय अपवादलिंग (सवस्त्र) रख सकते हैं।" (जै.ध.या.स./ पृ.१९६-१९७)। इस कथन के प्रमाण में ग्रन्थलेखक ने पादटिप्पणी में 'ततो हि गत्वा श्रमणार्जिकानां' आदि उपर्युक्त गाथाओं (२९ / ९३-९४) को ही उद्धृत किया है। यह कथन ग्रन्थलेखक की संस्कृतभाषा से अनभिज्ञता प्रकट करता है और उनके छलवाद को भी। वराङ्गयो (वरामयः) पद स्त्रीलिंगीय वराङ्गी शब्द का प्रथमाविभक्तिबहुवचन का रूप है। वह पूर्व पद्य में वर्णित क्षितीन्द्र पल्यः (राजा वरांग की पत्नियाँ) पद का विशेषण है। वराङ्गी शब्द का अर्थ है सुन्दर अंगोंवाली। अतः वराङ्गयः क्षितीन्द्र Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004044
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages906
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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