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________________ अ०१९/प्र०१ रविषेणकृत पद्मपुराण / ६४३ २१-२५)। दशरथ की अन्य रानियाँ भी उसी स्वर्ग में देव-पर्याय प्राप्त करती हैं। (प. पु. ( भा.३ (१२३ (८०-८१)। श्रीभूति नामक पुरोहित की वेदवती नामक कन्या आर्यिकादीक्षा लेकर तप करती है और ब्रह्मस्वर्ग में देव बनती है। (प.पु./भा.३/१०६/ १४१, १५२-१५४)। इस प्रकार पद्मपुराण में किसी भी आर्यिका की तद्भवमुक्ति का कथन नहीं है। इन तथ्यों से सिद्ध है कि आचार्य रविषेण को स्त्रीमुक्ति मान्य नहीं है। यह उन के यापनीय न होने का साक्षात् प्रमाण है। सोलहकल्पादि की स्वीकृति १. पद्मपुराण (भा.३) में सोलह कल्पों का उल्लेख है (१०५ /१६७-१६९), जब कि श्वेताम्बर और यापनीय मतों में बारह ही माने गये हैं। २. चार अनुयोगों के नाम दिगम्बर-परम्परानुसार दिये गये हैं करणं चरणं द्रव्यं प्रथमं च सभदेकम्। अनुयोगमुखं योगी जगाद वदतां वरः॥ १०६ / ९१॥ पद्मपुराण/ भाग ३। ३. काल द्रव्य का अस्तित्व स्वीकार किया गया है, जो श्वेताम्बर और यापनीय मतों के विरुद्ध है। (प.पु./ भा.३/१०५/१४२)। ४. आहारदान की विधि दिगम्बरमतानुसार वर्णित की गई है। (प.पु./भा.३ /१२०/ १५-१८,१२१/११-१७)। दाता के यहाँ देवों के द्वारा पंचाश्चर्य किये जाने का कथन है (प.पु./भा.३/१२१ / १९-२५), जो दिगम्बर-परम्परा का अनुसरण है। कथावतार की दिगम्बरपद्धति पद्मपुराण में राजा श्रेणिक के प्रश्न करने पर गौतम गणधर द्वारा कथा कही गई है। यह ग्रन्थ के दिगम्बर-परम्परा का होने का सूचक है। इस पर प्रकाश डालते हुए स्व० पं० परमानन्द जी शास्त्री लिखते हैं "दिगम्बर-सम्प्रदाय के प्रायः सभी ग्रन्थ, जिनमें कथा के अवतार का प्रसंग दिया हुआ है, विपुलाचल पर्वत पर वीर भगवान् का समवसरण आने और उसमें इन्द्रभूति-गौतम द्वारा राजा श्रेणिक को उसके प्रश्न पर कथा कहे जाने का उल्लेख करते हैं, जबकि श्वेताम्बरीय कथाग्रन्थों की पद्धति इससे भिन्न है। वे सुधर्मा स्वामी द्वारा जम्बू स्वामी के प्रति कथा के अवतार का प्रसंग बतलाते हैं, जैसा कि संघदास Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004044
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages906
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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