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४६० / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड ३
अ०१७ / प्र०२ दिगम्बरपक्ष
भगवती-आराधना और अपराजितसूरि : दिगम्बराचार्य नामक १३वें और १४वें अध्यायों में सप्रमाण सिद्ध किया गया है कि न तो 'भगवती-आराधना' के कर्ता शिवार्य यापनीय थे, न उसके टीकाकार अपराजितसूरि। ये दोनों दिगम्बर थे। अतः यदि यापनीय होने की स्थिति में इनके द्वारा उल्लिखित होने से यतिवृषभ यापनीय सिद्ध हो सकते थे, तो यह संभावना निरस्त हो जाती है। और यापनीयपक्षधर विद्वान् के उपर्युक्त तर्क से वे दिगम्बर सिद्ध होते हैं।
किन्तु , जिस 'अहिमारएण' इत्यादि गाथा (क्र.२०६९) में गणी शब्द आया है, उसकी अपराजितसूरि ने टीका ही नहीं की है। क्रमांक २०६७ से २०७१ तक की गाथाओं के उपसंहाररूप में केवल इतना लिखा है-"एवं पण्डितमरणं सविकल्पं सविस्तरं व्यावर्णितम्। वक्ष्यामि बालपण्डितमरणमित ऊर्ध्वं संक्षेपेण।" (भ. आ./ पृ. ८८७)। इसमें यतिवृषभ शब्द का उल्लेख ही नहीं है। अतः न तो शिवार्य के 'गणी' शब्द के प्रयोग से यह सिद्ध होता है कि उससे उन्होंने 'यतिवृषभ' का संकेत किया है और न अपराजितसूरि की टीका से। अतः शिवार्य और अपराजितसूरि के द्वारा यतिवृषभ के उल्लेख किये जाने का हेतु विद्यमान ही नहीं है। इस तरह भी सिद्ध है कि यतिवृषभ यापनीय नहीं थे।
'गणी' शब्द यतिवृषभ का सूचक नहीं यापनीयपक्ष
भगवती-आराधना के उल्लेखानुसार यतिवृषभ की मृत्यु उत्तरभारत के श्रावस्तीनगर में हुई थी। उत्तरभारत बोटिकों या यापनीयों का केन्द्र था, इसलिए यतिवृषभ यापनीय थे। (जै.ध.या.स./पृ. ११५)।
दिगम्बरपक्ष
यह हेतु भी 'भगवती-आराधना' की उपर्युक्त गाथा २०६९ में प्रयुक्त गणी शब्द को यतिवृषभ का सूचक मानने के आधार पर कल्पित किया गया है। किन्तु जैसा कि ऊपर स्पष्ट किया गया है, 'गणी' शब्द यतिवृषभ का सूचक है ही नहीं। इससे सिद्ध है कि उपर्युक्त हेतु असत्य है। इसलिए हेतु के अभाव में यतिवृषभ का यापनीय होना असिद्ध है।
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