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________________ तिलोयपण्णत्ती / ४४५ अ० १७ / प्र० १ सर्वथा एकान्त नहीं है। १२ प्रसिद्ध श्वेताम्बर विद्वान् पं० सुखलालजी संघवी ने भी ऐसा ही मत व्यक्त किया है। वे लिखते हैं- "दिगम्बरपरम्परा के भी प्राचीन ग्रन्थों में बारह कल्पों का कथन है ।" १३ इस तरह तिलोयपण्णत्ती में दिगम्बरपरम्परानुसार कल्पों की संख्या १६ और १२ दोनों मानी गयी है, किन्तु श्वेताम्बर और यापनीय केवल १२ मानते हैं, इसलिए तिलोयपण्णत्ती की यह विशेषता उसे दिगम्बरग्रन्थ ही सिद्ध करती है। ९ नव अनुदिश मान्य अनुवाद - " तत्पश्चात् एक राजू की ऊँचाई में नौ ग्रैवेयक, नौ अनुदिश और पाँच अनुत्तर विमान हैं। ऊर्ध्वलोक में इस प्रकार का विभाग कहा गया है।" 44 गेवेज्ज णवाणुद्दिस पहुडीओ होंति एक्करज्जूवो । एवं उवरिमलो रज्जुविभागो समुद्दिट्ठो ॥ १ / १६२ ॥ तिलोयपण्णत्ती की इस गाथा में नौ अनुदिश नामक नौ स्वर्गों का अस्तित्व स्वीकार किया गया है, जो श्वेताम्बरों और यापनीयों की मान्यता के विरुद्ध है। श्वेताम्बर मुनि उपाध्याय आत्माराम जी ने तत्त्वार्थसूत्र - जैनागम - समन्वय (पृ. ११९) में लिखा है'आगमग्रन्थों ने नव अनुदिशों का अस्तित्व नहीं माना है ।" अतः यह भी तिलोयपण्णत्ती के दिगम्बरीय ग्रन्थ होने का एक प्रमाण है । Jain Education International १० अन्तरद्वीपों की संख्या ९६ मान्य श्वेताम्बर-वाड्मय में अन्तरद्वीपों की संख्या ५६ मान्य की गई है, १४ किन्तु तिलोयपण्णत्ती में दिगम्बरमतानुसार ९६ का उल्लेख है । यथा, निम्नलिखित गाथा में लवणसमुद्र में विद्यमान ४८ द्वीपों का वर्णन किया गया है दीवा लवणसमुद्दे अडदाल कुमाणुसाण चउवीसं । अब्भंतरम्मि भागे तेत्तियमेत्ता १२. ‘अनेकान्त' (मासिक) / वर्ष २/ किरण १० / १ अगस्त १९३९ / सम्पादकीय टिप्पणी / पृ. ५४५ १३. तत्त्वार्थसूत्र / विवेचनसहित / प्रस्तावना/४/२०/ पा.टि.४/पृ. १२० । प्रकाशित १४. परमश्रुत प्रभावक मण्डल, श्रीमद् राजचन्द्र आश्रम, अगास से ई० सन् १९९२ वर्तमान ‘सभाष्य तत्त्वार्थाधिगमसूत्र' के अन्तर्गत तत्त्वार्थाधिगमभाष्य में ५६ अन्तरद्वीपों का बाहिरए ॥ ४ / २५१८ ॥ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004044
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages906
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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