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________________ अ०१७ / प्र०१ तिलोयपण्णत्ती / ४३७ हुए। देखिए "मल्ली णं अरहा---तिहिं इत्थीसएहिं अब्भिंतरियाए परिसाए, तिहिं पुरिससयेहिं बाहिरियाए परिसाए सद्धिं मुंडे भवित्ता पव्वइए।" (अध्ययन ८/मल्ली/ पृ.२७७)। किन्तु तिलोयपण्णत्ती में मल्लिनाथ का वर्णन पुरुष के रूप में है और उनके साथ एक भी स्त्री के दीक्षित होने का कथन नहीं है, केवल तीन सौ राजकुमारों के दीक्षा लेने की बात कही गई है। यथा पव्वजिदो मल्लिजिणो रायकुमारेहि ति-सय-मेत्तेहिं। पासजिणो वि तह च्चिय एक्को च्चिय वड्डमाणजिणो॥ ४/६७५॥ इसी प्रकार ज्ञातृधर्मकथांग में कहा गया है कि मल्ली अरहंत के साथ आभ्यन्तरपरिषद् की पाँच सौ आर्यिकाएँ और बाह्यपरिषद् के पाँच सौ साधु सिद्ध हुए हैं। यथा "मल्ली ण---पंचहिं अजियाँ-सएहिं अब्भिंतरियाए परिसाए, पंचहिं अणगारसएहिं बाहिरियाए परिसाए---सिद्धे।" (अध्ययन ८/मल्ली/ पृ. २८०)। किन्तु तिलोयपण्णत्ती में मल्लिनाथ के साथ एक भी स्त्री के मुक्त होने का कथन नहीं है, केवल पाँच सौ मुनियों के मोक्ष को प्राप्त होने का उल्लेख है। यथा पंचमिपदोससमए फग्गुणबहुलम्मि भरणिणक्खत्ते। : सम्मेदे मल्लिजिणो पंच-सय-समं गदो मोक्खं॥ ४/१२१४॥ यह तिलोयपण्णत्ती में स्त्रीमुक्ति की अस्वीकृति का एक अन्य ज्वलन्त प्रमाण है। २.३. समस्त तीर्थंकरों के तीर्थ में केवल मुनियों को ही मोक्षप्राप्ति तिलोयपण्णत्ती (४/११७७-९१) में आर्यिकाओं के लिए विरती शब्द का प्रयोग किया गया है। यह प्रयोग उपचारात्मक है, क्योंकि उनके महाव्रत भी उपचारात्मक ही होते हैं। इसका स्पष्टीकरण मूलाचार के अध्याय में किया जा चुका है। भगवान् ऋषभदेव से लेकर महावीर पर्यन्त प्रत्येक तीर्थंकर के तीर्थ में आर्यिकाओं की संख्या लाखों में थी। कुल मिलाकर उनकी संख्या पचास लाख, छप्पन हजार, दो सौ पचास (५०,५६,२५०) बतलायी गई है। किन्तु मोक्षप्राप्त करने वालों में केवल २. "मल्लिजिणो---संजादो।" तिलोयपण्णत्ती ४/५५१ । ३. देखिए, अध्याय १५/प्रकरण २/ शीर्षक १। ४. तिलोयपण्णत्ती ४/११७७-८८ । Jain Education Interational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004044
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages906
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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